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किस दौरे दर्दनाक से यारों गुज़र रहा हूँ मैं.

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Hindi Poetry
किस दौरे दर्दनाक से यारों गुज़र रहा हूँ मैं.
जीने की आरज़ू में लगातार मर रहा हूँ मैं.
 
तुम्हे जो ग़ार अँधेरा सा आ रहा हूँ नज़र,
कभी वो दौर था गुलज़ार घर रहा हूँ मैं.   ग़ार-खोह
 
थकान तेज़ है अब तो मैं माज़रत चाहूँ,
न जाने कब से तो गर्मे सफ़र रहा हूँ मैं.    माज़रत-क्षमा,गर्मे सफ़र-यात्रा रत
 
अभी तलक तो बंटा था तमाम दुनिया में,
बस अब सुकून से खुद में उतर रहा हूँ मैं.
 
तुम्हें कहाँ से भला लज्ज़तें नवाजूंगा,
खुद अपने आप की खातिर ज़हर रहा हूँ मैं.
 
तमाम घर की उमीदें हैं मुझसे वाबस्ता,
बिला वजह न बिफरने से डर रहा हूँ मैं.
 
समेटता था जो दामन अभी तलक मुझको,
उसे खबर तो करो फिर बिखर रहा हूँ मैं.
 
मुझे भी तर्के ताल्लुक से ऐतराज़ न अब,
तुम्हें भी आज से आज़ाद कर रहा हूँ मैं.
 
वो अब मिले भी तो पहचान पाऊँ मुश्किल है,
तलब में जिसकी महव उम्र भर रहा हूँ मैं.   महव-मग्न, तल्लीन
 
ये आरज़ू भी है तस्लीम कर ले वो मुझको,
औ ये भी सच कि उसी से मुक़र रहा हूँ मैं.
 
उधर न मक्र, न नफरत, न थी अदाकारी, 
वो और देस था अब तक जिधर रहा हूँ मैं   मक्र-मक्कारी,अदाकारी-अभिनय जो नहीं है उसे दिखाने का
 
लबों पे कब से लगे हैं बज़ाब्ता ताले,
यही न कम है अभी बात कर रहा हूँ मैं.

2 Comments

  1. rajendra sharma'vivek' says:

    Yah Rachanaa jo dil ki baat kah rahi hai
    rachanaaye padhkar mai mai pal pal savar rahaa hu

  2. Vishvnand says:

    वाह वाह बहुत खूब
    दिल में खंजर महसूस कर रहा हूँ मैं

    जहाँ जी जी के जीना जिंदगी थी
    वहां मर मर के क्यूँ जी रहा हूँ मैं

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