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कुछ साज़िशें थी खुदा की मुझे शायर बनाने की…..
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वजह यही थी मक़सूद शकील मेरे मर जाने की (मक़सूद-चाहत)
हो सजदे में सर तोहमतें हो मुझ पर ज़माने की
सज़ायें खुद पर मुजरिम ने ये मुक़रर कर लीं
मुन्सिफ भी लाये क्या दलील दिल को आज़माने की (मुन्सिफ – वकील)
चीखने लगे हैं लब जो हिलते न थे कभी
खामोश इश्क था ये वहशत है तेरे दीवाने की (वहशत – घबराहट)
दिल धड़कता नहीं सिने में अब लरज़ता है (लरज़ता – कांपना)
जब से सुनी गुलों ने ख़बर बहार आने की
हो इज़ाज़त अगर तेरे ग़मों की ए मेहरबान
ख्वाहिश है आज इस बीमार को मुस्कुराने की
उसने कहा और कर दी जान उसकी नजर मैंने
फुर्सत कहाँ थी उस दम सर के क़सम खाने की
बिखरने लगा मैं और ज़ज्बात मेरे फिजाओं में
जाने क्या आज सूझी उन्हें ख़त मेरे जलाने की
बिछड़ जाना ही मुनासिब होगा अब हमारा
कोशिशें हम करते रहे ये दिल को समझाने की
कुछ दर्द थे मेरे कुछ महसूस कर लिए शकील
कुछ साज़िशें थी खुदा की मुझे शायर बनाने की
Fantastic….