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तराशा जाएगा कब तक गलों को.

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Hindi Poetry
तराशा जाएगा कब तक गलों को.
ज़रा अब रोकिये इन पागलों को.
 
कुचल जाएगी दुनिया  गर रुके तो,
न बैठो देख पग के आबलों को.   आबलों-छालों
 
सफ़र को हैं न आमादा हमीं गर,
करेगा कौन तय इन फासलों को.
 
मिला इन्साफ भी मजलूम को क्या
ज़रा फिर देखिये इन फैसलों को.
 
जवाब उनकी जुबां में दीजियेगा,
न आती नम्र भाषा है खलों को.
 
ये हल तो मसअलों से भी बुरे हैं,
हलों को देखिये या मसअलों को.
 
इसी के वास्ते क्या है मिला बल,
सताएं आप निस दिन निर्बलों को.
 
पयोमुख हैं यहाँ विषकुम्भ सारे,
 समझना है ज़रूरी इन छलों को.
 
न फिर आयेंगे ये हस्सास लम्हे,   हस्सास-संवेदनशील
संजो कर लीजिये रख इन पलों को..
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तरक्की और सेहत सबकी खातिर !
बहुत हम सुन चुके इन चुटकुलों को.
 
नया फिर रूप लेंगे सांप सारे,
उतारा जा रहा है केंचुलों को. 

4 Comments

  1. dr.ved vyathit says:

    अति सुंदर साधुवाद

  2. Vishvnand says:

    बहुत खूब
    “तरक्की और सेहत सबकी खातिर !
    बहुत हम सुन चुके इन चुटकुलों को.” वाह

    करें देशसेवा ये देश लूटने की
    इनको पकड़ अब भेजो जेलों को …

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