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“ता’लीमे जदीद”
Hindi Poetry |
“ता’लीमे जदीद”
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अगरचे हमारी मुल्की ज़बां हिंदी ही मानी जाती है,
मदरसों में शुरूआत अग्रेज़ी के जरिये ही हो पाती है,
जो ताज़िन्दगी मग्रिबीयत का ही इज़ाफ़ा करती है,
अंग्रेजी की क़ुव्वते जाज़िब हिंदी के पर कतरती है !
नतीजतन ता’लीमे जदीद से हिंदी नज़रअंदाज हो रही,
और हर वतन की तहज़ीब तहे जमीं होकर है खो रही !
मुल्की मज़हबीयत सिकुड़ कर बुजुर्गों तक ही रह गई,
अंग्रेजी के आगे हर मुल्की ज़बां की अहमियत ढह गई !
अलहासिल असलियत में आज लाजिमी है ता’लीमे जदीद,
जिसके लिए आज सारा जहां ही हो रहा गवाह चश्मदीद !
यह बात आज छुपी नहीं है जो हो गई है आलम आश्कारा,
पढाई और ख़तो किताबत तक़रीबन अंग्रेजी में होता सारा !
मुल्क दर मुल्क सफ़र में भी अंग्रेजी की ही क़बूलीयत है,
आलम आश्नाई के लिए भी अंग्रेजी से होती सहूलियत है !
अमलदारी और बाज़ारी सौदागिरी में अंग्रेजी की ज़ियादत है,
अंग्रेजी है ज़रुरत आज की जिसकी सारा आलम शहादत है !
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मतालिब —–
(१) ता’लीमे जदीद = आधुनिकीकरण/आधुनिक शिक्षा;
(२) अगरचे = यद्यपि; (३) मुल्की ज़बां = राष्ट्रीय भाषा;
(४) ताज़िंदगी = जीवन पर्यंत; (५) मग्रिबीयत = पश्चिमीकरण;
(६) इज़ाफ़ा = बढ़ोतरी’; (७) क़ुव्वते जाज़िब = आकर्षण-शक्ति;
(८) तहे जमीं = धरती में दबी; (९) मुल्की मज़हबीयत = देश की
धर्म-परायणता; (१०) अलहासिल = सारांशतः (११) आलम आश्कारा =
जग-जाहिर; (१२) आलम आश्नाई = दुनिया से परिचित होना;