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‘पलाश’
Hindi Poetry |
रोज उड़ने का सपना देखकर खुश होती हूँ |
भूल जाती हूँ उड़ने को एक अदद ‘आकाश’ चाहिए ||
रातों के ख्वाब दिन की उमंग से भरपूर है |
हरा सके जो हौसलों को,बस ऐसा एक ‘काश!’ चाहिए ||
रस्सी हूँ पर पत्थर की, बल खोल ना पाओगे |
शर्त बस इतनी मेरी, जला दे मुझे, वो ‘आग’ चाहिए ||
क्यों बेसब्र है आँखे ‘शिप्रा’, दुनिया असल दिखती नहीं |
कुसूर इतना तो तुम्हारा है, आइना भी तो ‘शफ्फाक’ चाहिए ||
बहारों ने कब इनकार किया, तपती धुप में आने को |
पर दिले-सहरा को खुशनुमा रजामंद एक ‘पलाश’ चाहिए ||
कहीं “काश चाहिए” और कहीं “पलाश तो चाहिए” दोनों में तुक भंग है अर्थात रदीफ़ काफिये अथवा अन्त्यानुप्रास की समझ में कमी प्रदर्शित करती है, कृपया थोडा छंद शास्त्र का भी अध्ययन करें तो बात कही तो जाए मगर सलीके से कही जाए जिससे कि उसका असर दोबाला हो जाए.
@siddhanathsingh, जी सर, ये गलती मुझसे हो गई यहाँ | अभी ठीक करती हूँ |
धन्यवाद सर | सॉरी सर, मुझे काफिये के बारे में थोडा कुछ पता तो है पर लिखना सारा अन्दर से ही आता है |पर मैं कोशिश जरुर करुँगी सर | एक बार फिर से धन्यवाद |
Rachanaa kaa andaaz alag saa aur bahut badhiyaa lagaa
rachanaa bhii bahut janchii
Technique ke baare me anjaan huun
par rachanaa kaa bhaavrth aur bayaan bahut pyaaraa hai, dil khush kar gayaa.
Hardik badhaaii