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‘ वो एक अँधेरी रात थी ‘
Hindi Poetry, Jan 2012 Contest |
‘ वो एक अँधेरी रात थी ‘
वो एक अँधेरी रात थी ,
जब ख़ामोशी मेरे साथ थी ,
छाई थी वो कैसी उदासी ,
जाने मन में क्या बात थी !
वो एक अँधेरी रात थी………..
एक दर्द था सीने में ,
आँखों में कुछ नमी थी ,
होठों से अल्फाज़ न निकले ,
कहीं कुछ कमी थी !
वो एक अँधेरी रात थी………..
आँखों के बंद होने से पहले ,
सपनों की दुनिया में खोने से पहले ,
खुद को तनहा पाया था कहीं ,
दूर-दूर तक थी वीरानी ,
कहीं न कोई आवाज़ थी !
वो एक अँधेरी रात थी………..
सपनों की उस दुनिया में ,
एक प्यारे-से शख्स से मैं थी मिली ,
वो थे मेरे प्यारे पापा ,
जिनकी बगिया की मैं थी एक कली ,
उस पल की मुझे एक चाह थी !
वो एक अँधेरी रात थी………..
पापा से कर ढेर सारी बातें ,
बीते लम्हों को फिर से जिया मैंने ,
तब मेरी आँखों में एक ख़ुशी थी ,
लेकिन सपने के टूटते ही ,
आँखों के खुलते ही ,
खुशनुमा लम्हों का कारवां टूटते ही ,
पापा की फिर से वही कमी थी ,
इसीलिए मेरी आँखों में नमी थी !
वो एक अँधेरी रात थी………..
वो एक अँधेरी रात थी………..
– सोनल पंवार
ये तो रात के सपनों में इक सुन्दर अहसास की सुनहरी बात थी
जो पढ़ने पर दिल पर राज कर गयी
बड़ी प्यारी मनभावन रचना के लिए हार्दिक बधाई
Keep it up
Hearty commends
@Vishvnand,
ये तो आपकी इक सुंदर-सी टिप्पणी थी ,
जो पढने पर दिल को खुश कर गयी ,
इस टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सर !
regards
sonal.
पिता पुत्री के प्रेम के समर्पित रचना के बधाई
@rajendra sharma ‘vivek’, Thanks a lot.
अत्यंत सुंदर रचना सोनल जी….. बधाई…
@Sushil Joshi, Bahut-bahut dhanywad.
वाह सोनल जी, वाकई दिल को छू लेने वाली रचना थी…
Thanks