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आधुनिक…!

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Hindi Poetry

आधुनिक

एक जूनून सा ही तो था,
उसके अंतर्मन में,
न जाने कहाँ कहाँ से ढूंढ लाता था वो,
विभिन्न रूप,छंद, रस,
और अलंकार.

जब वो सुनाता था,
एक एक कर,
उन पंक्तियों को,
लयों में बाँध बाँध,
तो उठने लगते थे कई जोड़े हाथ,
गवाहियां बन,
खुद ब खुद,
उसकी कविता के ऊंचे कद के.

जब से उसने खुद को बदला है,
और अपने कद को,
कविता से ऊंचा समझ लिया है,
तब से गवाही देते हाथ,
उठने में अलसाते से लगते हैं,
और उसकी कविता के छंद भी,
छितराए से लगते हैं,
अब वह पैंतरे बदल बदल,
कुछ नया सा लिखता चीखता है,
अब उसकी कविता तो नहीं,
वह आधुनिक सा जरूर दिखता है.

 

***** हरीश चन्द्र लोहुमी

 

5 Comments

  1. siddhanathsingh says:

    ati utkrisht kavita,badhayi bhai harish jee.

  2. siddhanathsingh says:

    ati utkrisht kavita.

  3. yugal.gajendra says:

    लोह्मी जी,आपने तो अपने प्रोफाइल में ही अनायास जैसे कविता को परिभाषित कर दिया है, दिल से एक अच्छा इन्सान होना भी तो लिखने की पहली शर्त है, कविता जीवन के ज्ञात अज्ञात चक्र व्यूह में प्रवेश भी है,और उसका संधान भी. सबकी है, अपनी २ कविता, यही उसका सौन्दर्य भी है. यही तो साफ दिख रहा है आपकी कविता में.
    युगल गजेन्द्र

  4. Vishvnand says:

    भाई वाह उत्कृष्ट मनमोहक अर्थपूर्ण गहन अंदाज़ और रचना
    स्वावाभिक है कभी कभी कवि में प्रशंसा पा अहंकार का उभरना
    तब कविता देवी रूठती है और कवि समझ जाता है जो होता समझना
    बहुत मनभाया ये आपका इस तरह समझाना

    हार्दिक प्रशंसनीय रचना

  5. pallawi says:

    bohut bhai sir 🙂

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