…..क्या बाटु में दर्द को….
खुशियाँ होती तो बाँट लेता ,क्या बाटु मैं दर्द को ?
जख्मी है मेरा दिल मुझको ही तुम सहने दो /
बात उनकी छेड़ो ना ,मुझको तो बस चुप रहने दो /
बेवफा वो भी ना थे ,पर झाडो ना अतीत की गर्द को /
खुशियाँ होती तो बाँट लेता ,क्या बाटु मैं दर्द को ?
तडपना , सिसकना यादो में आहे भरना /
तीखे नश्तर देकर फिर निगाहे चुराना /
जख्मी कर जाये दिलो को ,ये अदाये है हसीनो की /
पीते पीते गम के जाम ,अब आदत हो गई पीने की /
रहने दो स्नेह लेप ,ना दूर करो इस मर्ज को /
खुशियाँ होती तो बाँट लेता ,क्या बाटु मैं दर्द को ?
भुला दिया मुझको तो क्या ,इसका कोई गम नही /
फिर कटेगा सफ़र यो ही साथ जो हमदम नही /
कुछ कदम जो साथ निभाया,कैसे उतारूगा उस कर्ज को /
खुशियाँ होती तो बाँट लेता ,क्या बाटु मैं दर्द को
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रचना का प्रयास स्तुत्य है
पर साथ कई गल्तियाँ शब्दों और लय की इस अच्छी रचना का स्तर गिरा रही हैं
इन गल्तियों पर ध्यान देकर और एडिट कर सुधारने की जरूरत है
जैसे “क्या बाटु में दर्द को” “क्या बाटूँ मै दर्द को” होना चाहिए इत्यादि और हर पंक्ति लय में
@Vishvnand, main bhi sahmat
@Vishvnand,
बहुत बहुत धन्यवाद विश्वनादजी और सिंह साहब ……
बिलकुल गलतीय हुई है …आप महानुभावो का मार्गदर्शन मिलाता रहेगा यही आशा है ……….