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जीवन का आधार
Feb 2012 Contest, Hindi Poetry |
फूलों की छाँव में नदी किनारे खड़ी एक अकेली नाव
वक्त की अभिशप्त आंधी ने किया मांझी से अलगाव
विधना के हाथों मजबूर, पंथ निहारे ,कब हो मिलाप
जैसे विरहिणी पिया बिन तडपे सहेजे सीने में घाव
वक्त की अभिशप्त आंधी ने किया मांझी से अलगाव
विधना के हाथों मजबूर, पंथ निहारे ,कब हो मिलाप
जैसे विरहिणी पिया बिन तडपे सहेजे सीने में घाव
किस विध जाये उस पार, सोच सोच जाये मन हार
मन का पंक्षी विरह के गीत गुनगुनाये बैठा इस पार
किसी मोड़ पर मिला था हमराह वह, मेरा मिहिर
नदिया तट पर आकर भी आंजुरि रही बिना नीर
पलक झपकते ही वह आँखों से ओझल हो गया
जैसे पूनम का चंदा ग्रहण के आगोश में छुप गया
जैसे सुनहरी धूप पर मायूसी का कोहरा छा गया
कोई ख्वाब,एक अहसास,हौले से छूकर गुजर गया
मन में है आस, बजेंगे मधुरिम गीत,फिर मिलेगी प्रीत
आंजुरि में खुशियाँ भर,मन का वृन्दावन होगा सुरभित
बहेगी जीवन सरिता निर्वाध, ज्यों नैया नदी के मझधार
नैया को जब वो खेवेगा, मिलेगा मुझे जीवन का आधार
संतोष भाऊवाला
विषय पर अति सुन्दर रचना और प्रयास का प्रकार
जैसे जीत का momentum है poetry passion पर लगातार सवार
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति और रचना
हार्दिक अभिवादन
आदरणीय विश्वनंद जी ,आप बड़ों का आशीर्वाद है बाकी लिखाता तो वही है मै तो निमित मात्र हूँ आपका अतिशय धन्यवाद !!!
सादर संतोष भाऊवाला
achchha parayas.
आदरणीय सिद्ध नाथ जी ,धन्यवाद !!
Achcha shabd chitra
आदरणीय विवेक जी ,रचना पसंद आई बहुत बहुत आभार !!!