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प्रकृति-जीवन डोर

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Feb 2012 Contest, Hindi Poetry

फिजा के हर रंग में
हर मौसम हर भाव भंग में
बस एक ही का है हाथ दिखता –
वो ऊपर जो सब को तकता!!

हरी भरी वादियों से धरा का हो रहा श्रृंगार,
पशु-पक्षी-मानव ग्रहण करते तन का भी आहार|
जहां लम्बी सांस ले मन हो जाए स्वच्छ-चिंतामुक्त,
अस्तित्व हो पूर्णतया उस प्रभू की याद में लिप्त!

एक हाथ है उसका जो भवसागर पार कराता,
उसका नाम, उसका ध्यान, बेड़ा है इस मानव का!
डोले तो वो हाथ रख दे, पार ले जाए उसका वरदान,
पतवार बना वह नाव खे रहा, सब का रखता ध्यान!!

जल स्त्रोत पूरी धरती पर बन अमृत की खान,
शुष्क कंठ कर रहा तरल यह जीवन का वरदान!
धरती को संवार रहे, सुन्दरता असीम, अनंत,
कल-कल का संगीत बिखेरता खुशीआं अत्यंत!!

संभालो, बचा लो, खज़ाना है यह भरपूर,
यह न हो, कल ढूंढे पर न मिले चैन दूर-दूर,
धूप बरसे, छाया न हो नसीब,
प्यास लगे, जल ही न हो करीब!
उसकी यह कृपा, उसकी सृष्टि का रूप,
सीने से लगा रखो, समझ उसका ही प्रतिरूप!!

4 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत सुन्दर और उपयुक्त
    सच यूं चित्र देखकर तो जरूर लगता
    कितनी शांत सुन्दर है उसने रची प्रकृति
    जहां हमें भेजा उसने है पाने मुक्ति होने मुक्त

    Hearty commends for the beautiful poem

  2. siddhanathsingh says:

    sandeshpoorn rachna.

  3. अच्छी सार्थक रचना

  4. parminder says:

    विश्व जी, सिद्ध जी, विवेक जी, दिल से आभार आप सब के उत्साह वर्धक शब्दों का!

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