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आज की सबसे बड़ी बीमारी …….!

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Hindi Poetry, Podcast

मेरे इक मेम्बर दोस्त ने मुझे लिखा कि उसे जल्दी के कारण ऐसा करना पडा l  मुझे मेरी ये रचना याद आ गयी जिसे  90 ‘s के दौरान मैंने Dignity Foundation के इक  प्रोग्राम में पेश की थी और p4p पर भी l आज उसके नए पॉडकास्ट के साथ यहाँ share करने में आनंद महसूस कर रहा हूँ ….
हम सब को इस बड़ी बीमारी से निपटना और बचकर रहना ही होगा गर जीवन का सच्चा आनंद लेना है l

 

आज  की  सबसे बड़ी बीमारी !

बडे शहर इस बंबई (मुंबई) की है
कौन सी सबसे बड़ी बीमारी…
बूझ सको गर तुम ये यारो,
हमे बताओ जल्दी जल्दी ?

ज़रा सोचिये, घबराइये मत .

ना ये केन्सर, ना ये टीबी,
ना ये हार्ट की, ना एड्स भी,
ना मलेरिया , ना ये फ्लू भी,
ना ये प्रदूषण, ना ये सर्दी,
ना ये गर्द है, ना ये गर्दी !

हम जल्दी मे बूझ न पाते,
ये सब बीमारी की जड़ सी,
बडे बडे इन शहरों की तो,
सबसे बड़ी बीमारी “जल्दी”
जल्दी जल्दी, सबकुछ जल्दी !

सबलोगों को लगी ये “जल्दी” !
खाना जल्दी, पीना जल्दी,
ट्रेन या बस पकड़ना जल्दी,
ट्रैफिक मे  भी  जाना जल्दी,
पहुँच के ऑफिस जल्दी मे ही,
फिर थोडा है सोना जल्दी !

जल्दी जल्दी काम है करना,
जल्दी मे सब काम बिगड़ना,
बिगडे काम को सीधा करने,
पूरे दिन का समय गंवाना !

जल्दी ने सब काम बिगाडा,
गया समय फिर हाथ न आया !

यहाँ प्यार भी होता जल्दी ..

यहाँ प्यार हो जाता जल्दी,
फिर शादी की जल्दी जल्दी,
शादी की रस्में भी जल्दी,
“हनीमून” कर आए जल्दी,
शादी हो गयी, समझ न पायें,
अब “डिवोर्स” की बातें जल्दी !

इक दूजे को समझने भी तो,
टाइम है लगता, नहीं समझते,
जल्दी मे नहीं मन की शांती,
इसीलिये सब झगडे होते !

यहाँ, खरीदार को जल्दी….

खरीदार को है ही जल्दी,
दुकाँदार को भी है जल्दी,
पैक करा कर जल्दी मे ही,
घर ले आये पार्सल जल्दी
पैक खोलकर देखा तो क्या,
खरीदनी थी इनको गंजी,
पेक मे कैसे आ गयी चोली ?

अब फिर से दूकान है जाना,
जल्द बदल ये सबकुछ लाना !

इन सब से ही होता “टेन्शन”
ख़ुद पर रहता नहीं “अटेन्शन”
तन और मन मे “इन्ड़ाईजेशन ”
बीमारी को “इन्विटेशन” !

नहीं समझ कुछ आता मेरे,
हमको  इतनी क्यूँ है जल्दी,
अगर हमें है समय बचाना,
बचे समय मे भी क्यूँ जल्दी,
जल्दी का यह चक्कर कैसा,
क्या हमको मरने की जल्दी  ?

जल्दी मे जल्दी के सिवा,
कैसे कुछ और हम  सोच सकें,
मानव जीवन वरदान जो ये,
कब इस पर हम कुछ गौर करें ?

कहतें है सब, भगवान के घर भी,
देर भले, अंधेर नहीं,
पर बड़े बड़े इन् शहरों में,
अंधेर नगर इन् शहरों में,
जल्दी के सिवा, कुछ और नहीं !
जल्दी के सिवा, कुछ और नहीं !

” विश्व नन्द ”

4 Comments

  1. ashwini kumar goswami says:

    Fantastic ! Genuinely ponderous ! Deserving 5-stars !

  2. Sir ,
    Don’t worry , someone has to run and the other has to laugh ,advise and have fun.
    Very interesting take on mankind ‘ in a hurry’
    sarala

    • Vishvnand says:

      @SARALA KURUP JAGAN
      Thanks so very much for your elegant comment.on this worry about hurry
      I do enjoy as also feel worry & miserable too seeing people always so much in a hurry
      Often they get so habituated with hurry that they don’t even know why they are at all in a hurry…
      But Hurry and worry they must otherwise they feel their very existence is perfunctory…

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