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“अनुनय-विनय”
Hindi Poetry |
“अनुनय-विनय”
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हे वरदा ऐसा वर दे, है श्वेतपद्मासना वर दे !
कुछ ऐसा करदे कि मैं कवितायें सदा लिखता जाऊं,
ताकि मरणोपरांत भी अपनी रचनाओं में दिखता जाऊँ !
रचनाकारी से बचना कठिन अब लगता है मेरे लिए,
जो भी ज्ञान भरा मुझ में वो पुनः समर्पित तेरे लिए !
मेरी प्रस्तुतियों का तेरे द्वारा अवलोकन है वांछित,
जिसके लिए मैं यावज्जीवन रहूँगा सदा आकांक्षित !
p4p के पद्य-कुञ्ज में कुशल कविगण हैं अनेकानेक,
सारे ही स्वच्छंद हैं लिखने में निपुण हैं स्वयं अतिरेक !
मेरा ये सौभाग्य है कि मुझे प्राप्त है सब की अनुशंसा,
जो ही प्रोत्साहक है सर्वदा देने को ह्रदय में पूर्ण प्रशंसा !
सुप्त अवस्था में ही चाहे देदे तू तनिक प्रोत्साहक वरदान,
तेरे ‘तथास्तु’ कह देने से ही मुझमें आ सकेगा पूरा ज्ञान !
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बहुत मनभावन सुन्दर रचना जिसमे आपने अपना ही नहीं
किया है कई अन्य कविमित्रों की आतंरिक इच्छा का सुन्दर विवरण
प्रभु का ही है वरदान कि होता मन में passion for poetry का उगम
और उदय होती p4poetry जैसी साईट जो करती रहती अपने में इस प्रभु देन का सांत्वन
Heartfelt commends
@Vishvnand, Grateful
thanks !
कवि की आन्तरिक भावनाओं का अति सुंदर वर्णन – सर, जिस अदृश्य जिस्म से रचनाओं का उदग्म होता है वो सदा अमर होता है-और वही अमरत्व कवि की आत्मा होता है – बिना माँ कृपा के न तो जिव्हा पे शब्द क्रीडा करते हैं, न दिल के भाव कागज़ पर उतरते हैं-इस रचना में निस्वार्थ भाव से इस मंच प्रत्येक रचनाकार के लिए आपने जो माँ से अपनी झोली फैला कर जिस वर को माँगा है उसके लिए मैं व्यक्तिगत रूप से नतमस्तक हूँ- इस रचना के लिए आपको शत शत प्रणाम और बधाई सर जी
@sushil sarna,
आपने प्रस्तुति और स्तुति के मूल उद्गारों की विस्तृत समीक्षा करके
मुझे और प्रोत्साहन दिया जिसके लिए मैं सर्वदा आपका शुभाकांक्षी
हूँ ! हार्दिक धन्यवाद !
“जो कह दिया सो कह दिया.
इश्क में आपकी रचना के,
आपको गुरुवर कह दिया.”
राधे राधे
@sahil, रचना से बचना
अब कठिन होगया मेरे लिए, जो भी ज्ञान भरा मुझमें वो समर्पित
होगा सबके लिए !