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अपना तआर्रुफ़ कराता भी क्या
Hindi Poetry |
अपना तआर्रुफ़ कराता भी क्या,
क्या हूँ मैं यारो बताता भी क्या।
पहचाने वो न थे सूरत से जब,
अब याद उनको दिलाता भी क्या।
फ़ुर्सत तो पल भर की थी न उन्हें,
जमीं गुफ़्तगू की बनाता भी क्या।
उनको शिकायत कि चुप क्यों रहा,
मेरे पास क्या था सुनाता भी क्या।
पता मुझसे बंगले का गर पूछ्ते,
बे आशियाँ मैं लिखाता भी क्या।
महफ़िल जो कहती के लगते हैं क्या,
रिश्ता मैं उनसे जताता भी क्या।
बहुत ही प्यारी नज़्म
अंदाज़े बयाँ को मेरा शुक्रिया
कितना सराहा है दिल ने इसे
लफ़्ज़ों मैं कैसे बताता भी क्या
@Vishvnand, मेरी रचना से सुन्दर है तारीफ आपकी
इससे ज्यादा मैं सर और झुकाता भी क्या
@Vishvnand, मेरी रचना से सुन्दर है तारीफ आपकी
इससे ज्यादा मैं सर sir झुकाता भी क्या
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