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खुद को मै समझाऊँ ये कुछ …!
Hindi Poetry |
खुद को मै समझाऊँ ये कुछ …!
कैसे खुद को मैं समझाऊँ,
समझ मेरे जो आया अब कुछ,
सुख की शैया में सोकर भी,
समझ न पाता था मेरा दुःख ….
क्यूँ आये हैं दुनिया में हम,
चाहते रहते क्यूँ हरदम कुछ,
जो पाना चाहा है सच में,
लगता था है नहीं यहाँ कुछ ….
जब खुद को ही ना जाना है
जीना क्या समझें कैसे कुछ
ढूँढ़ते जीने के अर्थ को
अर्थहीन से ढूँढे सब कुछ
ऐसी दुविधा में जीते जी,
दिल में उभरा ख्याल है ये कुछ,
पाने में सुख यहाँ है झूठा,
सुख है, दे दो अपना सब कुछ ….
करो निछावर जीवन को तुम,
अच्छे कार्यों प्यार में तत्पर,
मन में फिर जागेगा जो सुख,
दिन दिन जीवन पाता सबकुछ ….!
और जीवन का अर्थ न ढूँढो
नहीं जान पावोगे तुम कुछ
“विश्व नन्द”
“जो पाना चाहा है सच में,
लगता था है नहीं यहाँ कुछ”
“ढूँढ़ते जीने के अर्थ को
अर्थहीन से ढूँढे सब कुछ”
(विश्वनंद जी सादर प्रणाम, उपरोक्त पंक्तियों में शब्द जितने कम हैं उतना ही भाव बहुत गहरा है. इस अर्थपूर्ण मार्गदर्शन हेतु कोटी-कोटी धन्यवाद |)
@sahil,
आपके इस प्रोत्साहनपर प्रतिक्रिया ने दिल खुश कर दिया
आपका बहुत बहुत शुक्रिया .
उत्तम दार्शनिकतापूर्ण प्रस्तुति हेतु निस्संकोच ५-सितारे !
@ashwini kumar goswami
आपकी इस प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया
और मुझमे उत्साह की गहरी वृद्धि
शतश: आभार
achchhi seekh.
@Siddha Nath Singh
हार्दिक आभार