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“नारी-प्रधानता”
Hindi Poetry |
“नारी-प्रधानता”
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लाड़-प्यार-दुत्कार झेलते तब होती थी बड़ी छोरी,
धकेलते थे घर से उसको, चाहे काली हो या गोरी !
माता-पिता होते आतुर कि कोई भी मिल जाए दूल्हा,
टोह लगाके चहुँ ओर ढूंढ लेते थे कोई भी भटका-भूला !
येनकेन बिठाके तिकड़म कर देते थे उसके हाथ पीले,
भाग्य भरोसे पर ही वो चाहे-अनचाहे जैसे तैसे जीले !
ये थी तब की बात जब कि नारी अशिक्षित होती थी,
पुरुष-प्रधान युग में ही वो अल्पप्रतिष्ठित होती थी !
आज आ गया है युगांतर जब नारी में जागृति आयी,
नारी-पुरुष समानाधिकार हुए जब से वैधानिकता छायी !
वर्तमान में नारी-प्रधानता दृष्टिगत है यत्र-तत्र-सर्वत्र,
चाहे हो घर, बाहर, शिक्षालय-न्यायालय या संसद सत्र !
यह सारा हुआ है प्राकृतिक विधि के विधान के अनुकूल,
क्यों कि सारे भव की रचना की महालक्ष्मी ही है मूल !
इसीलिए नवरात्र के पावन पर्व में कन्याएं पूजी जातीं,
जगज्जननी के नौ स्वरूप से सादर भोग-प्रसाद खातीं !
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बहुत सुन्दर मनभावन अर्थपूर्ण रचना
शास्त्रों में भी नारी को ही देवी सम है माना
हार्दिक बधाई
“वर्तमान में नारी-प्रधानता दृष्टिगत है यत्र-तत्र-सर्वत्र,
चाहे हो घर, बाहर, शिक्षालय-न्यायालय या संसद सत्र !
यह सारा हुआ है प्राकृतिक विधि के विधान के अनुकूल,
क्यों कि सारे भव की रचना की महालक्ष्मी ही है मूल !”
यही बात नर नारी आजके दोनों जाते भूल
और समानता की लड़ाई में फिजूल रहते गुल
@Vishvnand,
साभार धन्यवाद !