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“परम्परागत पूजा”
Hindi Poetry |
“परम्परागत पूजा”
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मैं पूजा में बैठा, सम्मुख दुर्गा माँ की मूर्ति,
जिसके दर्शन से आती तन-मन में स्फूर्ति !
जगदम्बे की अनुकम्पा से होता है निष्पाप ह्रदय,
वैदिक मंत्रोच्चार से पूजक हो जाता है निर्भय !
परम्परागत पूजा है हमारी जो मैं करता आया हूँ,
कन्या-पूजन करके उनकी झोली भरता आया हूँ !
बाल्यकाल्य से ही मेरे मन में भरी हुई लगन ऐसी,
नवरात्रि के पावन पर्व में पूजा रही सदा ही हितैषी !
श्रद्धापूर्ण पूजन से अमानवीयता हो जाती नष्ट,
दृढ़ विश्वास से सुगमतापूर्वक दूर होजाता कष्ट !
सच्चरित्र होजाता है मन ऐसे विधिवत`पूजन से,
भय नहिं रहता मिलने से किसी भी पीड़क दुर्जन से !
नम्र निवेदन है मेरा इस धरा में जन्मे मानवों से,
दुर्गा पूजा करोगे तो नहिं होगी हानि दानवों से !
जय अम्बे माँ, जय जगदम्बे, जय जय जगज्जननी,
ऐसा वर दे भक्तों को कि उनका तन हो नहीं छलनी !
अपरम्पार है तेरी महिमा, जो है त्रिदेव से अभिन्न,
तेरे कुपित होने से ब्रह्मा-विष्णु-शिव भी होजाते खिन्न !
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“सच्चरित्र होजाता है मन ऐसे विधिवत`पूजन से,
भय नहिं रहता मिलने से किसी भी पीड़क दुर्जन से !
नम्र निवेदन है मेरा इस धरा में जन्मे मानवों से,
दुर्गा पूजा करोगे तो नहिं होगी हानि दानवों से !”
“गोस्वामी जी आपकी रचित सुन्दर पंक्तियों को साहिल का सत्-सत् नमन स्वीकार करें.”
@sahil,
शुभं भव तव !
@sahil, शुभं भव तव !
A poem rather different & quite special
in glory of auspicious Indian Pooja ritual
Heartening to those believing in rituals
Liked very much
@Vishvnand,
वर है वेदमाता का कदाचित` यह कि मैं लिखता जाऊं,
मरणोपरांत भी ताकि मैं इन रचनाओं में दिखता जाऊं !
@ashwini kumar goswami
अनन्य वर सत सौभाग्य है
@Vishvnand</
haardik dhanyavaad punashchah !
@Vishvnand,
हार्दिक धन्यवाद पुनश्चः !