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प्रेम गीत: एक आदिम नाच
Hindi Poetry |
आज मुझमें
बज रहा
जो तार है
वो मैं नहीं-
आसावरी तू
एक स्मित रेख तेरी
आ बसी
जब से दृगों में
हर दिशा तू ही दिखे है
बाग़- वृक्षों में-
खगों में
दर्पणों के सामने
जो बिम्ब हूँ
वो मैं नहीं-
कादम्बरी तू
सूर्यमुखभा, कैथवक्षा!
नाभिगूढा!
कटिकमानी
वींध जाते ह्रदय मेरा
मौन इनकी
दग्ध वाणी
नाचता हूँ
एक आदिम
नाच जो
वो मैं नहीं-
है बावरी तू
बहुत प्यारी रचना रस से ओत प्रोत ,परन्तु एक स्थल पर लिंग विसंगति दिखी-
सूर्यमुखभा, कैथवक्षा!
नाभिगूढा!
कटिकमानी
वींध जाते ह्रदय मेरा
मौन इनकी
दग्ध वाणी
इसमें बींध जाती ह्रदय मेरा लिखा जाना शायद सही होगा,क्यों?
बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति और अलग ढंग की रचना
बहुत मन भायी