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शाकाहारी भेजा फ्राय ….!
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शाकाहारी भेजा फ्राय ….!
सबका अपना अपना भेजा है
हर भेजे में कितना सारा सब कुछ भरा है
फिर भी नाखुश है हम, कितनी बातें भेजे के बाहर हैं
इस समझ से बेकार अपने भेजे को कोसते रहते हैं
भूल जाते हैं कि सब समझ अपने भेजे के ही अन्दर है
इसी कारण तो हम बाहर की बाते समझ सकते हैं
जब वो अपने अन्दर आकर भेजे की समझ उकसाती हैं
अपना भेजा ही समझाता रहता है
भगवान ने हमें दुनिया में भेजा है,
पर ऐसा भेजा ही नहीं दिया है
कि हम दुनिया की सारी बातें भेजे से समझ सकें
हमें भगवान् ने भेजा जरूर है
पर हमारा भगवान् सा भेजा नहीं है
इसीलिये हमारे भेजे को भगवान् की जरूरत है
भेजा है हमें यहाँ मिलजुल कर प्यार से रहने
और प्यार से अपने भेजे में जितना समझ सकें समझने
ऐसी समझ जो हमें बेकार के लड़ने झगड़ने और हिंसा से रोके
प्यार और भाईचारे से मिलकर सत्कार्य करने प्रवृत करे
कोई भी दुष्ट और दुराचारी काम न करें
जीवन का सत और सात्विक आनंद लेते हुए जीवन व्यतीत करे
बस इसी अनुभूति से जीने प्रभु ने हमें यहाँ भेजा है
और इसी के लिए भेजा भी दिया है
ये बात हमें अपने भेजे में बिना भूले याद रखना है
बेकार अपने भेजे को कोसना बुरी बात है
और अपने भेजे का अहंकार भी बहुत गलत है
अपने भेजे से कोई गलत काम करना पाप है
बड़े प्यार से मेरे भेजे ने अपने ही भेजे से ये मुझे कहा है
जो मैंने खुद समझ भेजे के कहे नुसार यहाँ लिख दिया है
बहुत ट्राय करके भेजे ने मेरा ये फ्राय किया है …
ये मेरा “शाकाहारी भेजा फ्राय” आपके समक्ष है ….!
” विश्वनंद “
अपने भेजे में घुसी बात ये पहुंची तेरी.
क्या सही बात औ’ किस धज से ये भेजी तुमने.
@siddhanathsingh
कमेन्ट के लिए हार्दिक आदर
मगर “धज” का अर्थ न घुसा भेजे के अन्दर . 🙂
@Vishvnand, सज धज के -सुना होगा ये टर्म आप ने, धज मतलब किस अदा से
@siddhanathsingh
हार्दिक शुक्रिया, बड़ी धज से समझाया आपने धज का मतलब
चाहता हूँ अब करना “सज धज” और “धज” का उपयोग किसी रचना के अन्दर
ऐसे भाये शब्द ही तो हैं जो कई बार खुद ही करवाते नई रचना का सुन्दर उदय