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हम तो दहलीज़ के दिए ठहरे

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Hindi Poetry

हम तो दहलीज़ के दिए ठहरे 

कब से रोशन तेरे लिए ठहरे.

उम्र दरिया है एक रवानी में,
किस समंदर में देखिये ठहरे.

ऐ परिंदे न यूँ दिखा जौहर,
बैठे हरसू बहेलिये ठहरे.

किससे उम्मीदे एहतिजाज रखें,
लब यहाँ तो सभी सिये ठहरे.
एहतिजाज-विरोध,प्रतिकार 

मंजरे आम पर न आयेंगे,
हम मसौदे  के हाशिये ठहरे.
मंजरेआम-सबके सामने 

ज़िन्दगी हम समझ नहीं पाए,
तेरे पेचीदा जाविये ठहरे.
जाविये-कोण 

2 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत बढ़िया हर शेर
    पढ़ते पढ़ते सोचने नजरिये ठहरे

  2. sahil says:

    सिंह साहब दिल में गहरी उतर गई, कुछ भी कहो. लाज़वाब |

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