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हम तो दहलीज़ के दिए ठहरे
Hindi Poetry |
हम तो दहलीज़ के दिए ठहरे
कब से रोशन तेरे लिए ठहरे.
उम्र दरिया है एक रवानी में,
किस समंदर में देखिये ठहरे.
ऐ परिंदे न यूँ दिखा जौहर,
बैठे हरसू बहेलिये ठहरे.
किससे उम्मीदे एहतिजाज रखें,
लब यहाँ तो सभी सिये ठहरे.
एहतिजाज-विरोध,प्रतिकार
मंजरे आम पर न आयेंगे,
हम मसौदे के हाशिये ठहरे.
मंजरेआम-सबके सामने
ज़िन्दगी हम समझ नहीं पाए,
तेरे पेचीदा जाविये ठहरे.
जाविये-कोण
बहुत बढ़िया हर शेर
पढ़ते पढ़ते सोचने नजरिये ठहरे
सिंह साहब दिल में गहरी उतर गई, कुछ भी कहो. लाज़वाब |