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“एकाकी नहीं ईश्वर”

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Hindi Poetry

“एकाकी नहीं ईश्वर”

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ई:+वर मिलाने से ही शब्द बनता है ईश्वर,

ई: करती नारी को संबोधित वर होता है नर !

शिव में से भी ‘इ’ अलग होने से बन जाता शव,
ब्रह्मा में से मा निकलने पर बचता है केवल ब्रह !
नारी ही है मूल प्रकृति जिस बिन अस्तित्व नहीं नर का,
इसीलिए आदि जन्म कहलाता अर्धनारीश्वर का !
मुर्गा जब बोला मुर्गी से कि “मैंने तुझे उत्पन्न किया”,
मुर्गी ने पूछा मुर्गे से कि “तुझको किसने जन्म दिया” ?
मुर्गा तुरत बोला कि “मैं तो  इक  अंडे  से लिकला ” !
मुर्गी ने फिर पूछा कि “कहाँ से वो अंडा निकला ” ?
यूं हुए उलट -पुलट प्रश्नोत्तर,कोई नहीं हल  निकला ,
यूं बहस  में बीता आज  तो उसमें से कल  निकला  !
कल  भी जब होजायेगा आज  तो आज  भी हो जाएगा कल ,
दोनों उलट -पुलट होके आते जाते रहेंगे रूप बदल  !
प्रकृति ने ही सृष्टि रचने को सृष्टा को साकार किया,
सृष्टा ने प्रकृति के सान्निध्य से सृष्टि को आकार दिया !
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7 Comments

  1. Vishvnand says:

    दिलचस्प अर्थपूर्ण हास्य रचना 🙂
    मन भायी
    समझ न आया मुर्गा क्यूँ ऐसे गधे जैसा बोला 🙂
    प्रश्न तो यह है कि पहले मुर्गी आयी या आया अंडा
    मुर्गे का सवाल ही कहाँ है वो तो पहले से था आ बैठा .
    जैसे Adam को ईश ने Eve के पहले था बनाया 🙂

    • ashwini kumar goswami says:

      @Vishvnand,
      प्रतिप्रश्न तो मुर्गी ने मुर्गे से किया कि “तुझको किसने जन्म दिया” ?
      मुर्गे का उत्तर था, “मैं तो अंडे से निकला” ! मुर्गी ने फिर पूछा कि वो
      अंडा किसने दिया” ? अंडा तो वस्तुतः मुर्गी ने ही दिया ! अतः नारी को
      ही आदि सृष्टि होना स्वीकार्य हुआ और उसने ही सृष्टा को सृष्टि को
      आकार देने हेतु प्रकट किया !

      • Vishvnand says:

        @ashwini kumar goswami
        आपकी रचना में पहले मुर्गा बोला
        “मुर्गा जब बोला मुर्गी से कि “मैंने तुझे उत्पन्न किया”,
        इस challenging statement के कारण ही आगे का वाद उत्पन्न हुआ

        • ashwini kumar goswami says:

          @Vishvnand,कृपया
          कविता का सारांश निकालें !

          • Vishvnand says:

            @ashwini kumar goswami
            सारांश सार अंश से ही सही निकलता है 🙂

            • ashwini kumar goswami says:

              @Vishvnand,सारांश
              यह है कि ईश्वर को एकाकी मत समझो, उसका आदि रूप
              अर्धनारीश्वर है ! प्रकृति ने उसे रचकर अपने में समाविष्ट किया
              और सृष्टि का प्रसार करने का निर्देश दिया !

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