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“राज”

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Hindi Poetry

“राज”

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राज का राज समझ नहिं आता, क्या है इसका राज ?
राजा चले गए फिर भी राज का क्यों रहा वही अंदाज़ ?
कहने को तो गणराज्य कहा जाता जनता का राज,
लेकिन राजाओं से भी ज्यादा इसके ठाठबाट हैं आज !
नेहरु का राज, इंदिरा का राज, राज नारायण का राज,
कामराज का राज, भाजपा का राज, राजनेताओं का राज ! 
शाही बंगलों, शाही वाहन, शाही बाग़-बगीचों का आनंद,
जिनके शाही रख-रखाव पर होता नहीं कोई प्रतिबन्ध !
पानी, बिजली, दूरभाष के व्यय की नहीं है कोई सीमा,
मंत्रीगण, संसद सदस्यों का अपव्यय नहीं हो रहा धीमा !
निजहित के कार्यों हेतु भी सरकारी यात्राएं की जातीं,
वाचाली से जनता के सम्मुख ये जनहित में कही जातीं ! 
स्वप्न-बाग़ दिखलाकर जनता को सदा भ्रमित किया जाता,
जब कि लाखों दीनहीन लोगों के घरों में नहीं है रोटी-आटा !
इसीलिए कहते हैं “भारत धनी है किन्तु भारतीय हैं दीन” 
चाहे हो जनता पराधीन फिर भी समझती है स्वाधीन !  
यही है राज का राज जो राजाओं से नेताओं में आया,
अंग्रेजों को “भारत छोडो” कहकर उनका पद अपनाया !
नेहरु का राज, इंदिरा का राज, राजनारायण का राज,
कामराज का राज, भाजपा का राज, बसपा का राज,
सोनिया का राज, राजीव का राज, राहुल का राज 
सापा का राज, सपा का राज, त्रिमूका का राज, नक्सली राज 
और न जाने किस किस का राज बेरोक छा रहा आज !
जिनका है राज आज वो फैला रहे हैं वंशवाद की खाज !
बेटी-बेटों, बहुओं या निकटम रिश्तों की ताजपोशी होती,
भारत की भावुक जनता की मजबूरन ही ख़ामोशी होती !\
राज शब्द अमिट है चाहे राजाओं के बार बार चहरे बदलें,
असहाय भोली जनता केवल झांकती ही रहती है बगलें !
रहते जाओ, सहते जाओ, जो कहना है कहते जाओ,
इस देश की पावन गंगा में मरणोपरांत बहते जाओ ! 
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2 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत सुन्दर मार्मिक रचना है हार्दिक बधाई
    बयान है मुश्किल कितनी ये मन को भायी

    भारत में आज चमचेगिरी राजनीति पैसा और नाम की जिनको है बुरी खाज
    वही तो कूटनीति करते रहते, जनता को दुःख देते, येन केन प्रकारेण करने राज
    इनके ही कारण अधोगती में जा रहा देश अपनी महान संस्कृति और समाज
    इनको सबक सिखाना ही पड़ेगा क्यूंकि ये बन गए हैं कट्टर घूसखोरी बिना कोई लाज

    • ashwini kumar goswami says:

      @Vishvnand,
      कमाते जाओ, खाते जाओ ! डकारते जाओ नकारते जाओ !
      यही कूटनीति अपनाकर देशभक्ति की शेखी बघारते जाओ !

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