***जानवर भी शर्माते हैं…..***
वो
अंधेरों के दलाल हैं
जिनके हाथों में मशाल है
खाल है इंसान की
और
जानवर सी चाल है
भोर होते ही जिन्दगी की
मौत लिखते माथे पे
तिजोरियां नोटों से भरते
दरिंदगी शर्मसार है
ममता
कहते हैं किसको
वो जान भी पाए न थे
और अबोधों के दलालों के
चील से नुकीले नाख़ून
मासूम बदन में धंस गए
गोशत के व्यापारियों को
भला दर्द कहाँ पे होता है
बेच के मासूमों को
ये चैन की नींद सोते है
रेल के डिब्बों में
ढाबों,होटलों में
काम करते
जानवरों से भी
बद्दतर जिन्दगी
गुजारते
बचपन के ये मासूम चहरे `
अपनी
अंधेरी किस्मत की साथ
अंधेरों की चद्दर ओढ़ कर
अपनी हथेली में
अपने आंसू छुपाकर
सो जाते हैं
सच
इंसानी दलालों के
इस कृत्य पे तो
जानवर भी शर्माते हैं, जानवर भी शर्माते हैं…..
सुशील सरना
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Good tirade against child Labour.
Kusum
@kusumgokarn,
Thanks Kusum jee for recognizing root of the thought.
सुशील जी…भरसक चोट करती है रचना और मुद्दे पर पाठकों का ध्यान खींचती है. जिस कौशल से आपने गोश्त के व्यापारियों की उपमा देते हुए उन दलालों पर लानत भेजी है..मैं दुआ करूँगा कि ये लानत सही मायने में उन पर उतरे. दुआ शब्द में न सीमित होके रह जाए, इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि हममें से हर एक यथा संभव इस मुद्दे के खिलाफ कुछ जुम्बिश जरूर दिखाए.
आपको सलाम!
@Reetesh Sabr,
आपकी इस ऊर्जावान प्रतिक्रिया का हार्दिक शुक्रिया रितेश भाई-मुद्दे उठेंगे तो हल भी निकलेंगे-आज नहीं तो कल-पर प्रयास जारी रहने चाहियें
वीभत्स समाज का खांचा बहुत अच्चा खींचा है आपने!!! पता नहीं इस समस्या का समाधान कभी होगा भी ?
संतोष भाऊवाला
@santosh bhauwala,
प्रश्न आया है तो हल भी निकलेगा-चिंगारी ही नहीं होगी तो हवा क्या करेगी – रचना पर आपकी पैनी प्रतिक्रिया का हार्दिक शुक्रिया संतोष जी
ज्वलंत विषय पर बहुत प्रभावी मार्मिक रचना
ह्रदय झकझोर कर रख देती है
“सच
इंसानी दलालों के
इस कृत्य पे तो
जानवर भी शर्माते हैं, जानवर भी शर्माते हैं…” कठोर सत्य
और हम कुछ भी नही कर पा रहे हैं
सिर्फ क़ानून ही बनाते रहते हैं …
Commends for the poem
@Vishvnand,
रचना ने आपको छुआ – आपने रचना की धड़कन को महसूस किया-आपकी इस ह्रदय ग्राही प्रतिक्रिया का हार्दिक शुक्रिया-हल तो हर समस्या का है लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो राहत की उम्मीद किस्से की जाए-इसमें सामाजिक चेतना का होना आवश्यक है अन्यथा कोइ कानून काम नहीं कर पायेगा.-आपकी पैनी प्रतिक्रिया का हार्दिक शुक्रिया सर जी
सदियों से मानव का व्यापार चला आ रहा है, गरीब, कमजोर यूंही जानवरों से बिक जाते हैं, आज तक कोई भी पुष्ट समाधान नहीं निकल पाया है|
बहुत सशक्त रचना|
@parminder,
रचना पर आपकी इस सशक्त प्रतिक्रिया हार्दिक शुक्रिया परमिन्द्र जी