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माँ
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माँ
हर शिशु का प्रारब्ध
पहली पुकार
पहला विश्वास
पहली आस्था
जैसे सृष्टि के रचयिता ने कह रखा हो
बस उसी को पुकारना
तभी तो बड़े होने पर भी पीड़ा में
सहज ही मुहं से निकलता
माँ …………
अमृत की बुँदे टपकाती
सोते हुए भी जागती
सस्नेह संस्कारित करती
अनुसाशन की डोर में बांधती
धुप में छाँव, सर्दी में अलाव
दिल में दुआ ,ममत्व भाव
सुबह का उजाला ,शाम का दीप
दोनों जैसे मोती और सीप
कुदरत का अमूल्य उपहार
माँ ……….
नयी सुबह नए इरादे सामने होते
इन इरादों में खुशियों के रंग
तो मुश्किलों के अश्क भी होते
पर बच्चो पर न्योछावर करती
अपना पूरा जीवन
जिंदगी की जद्दोजहद में
उम्र के चार दशक कब बीत गये
कब उम्र का धागा धीरे धीरे
खुलता चला गया
घर परिवार की जिम्मेदारियां निभाते
छोड़ गया समय कब अपना निशाँ
करा रहा आइना अब उसका आभास
फिर भी किये जा रही है
हर समस्या का समाधान
माँ ………………
संतोष भाऊवाला
Maataa se bete ka rishta,aur mamataa me ramataa iish
mamataa ki aankho me aansu ,aansu karunaa ki hai tees
betaa maa ki hotaa mannt maataa ke charano me jannt
jisane bhi mamataa ko paayaa,paayaa ishavar ka aashish
@Rajendra sharma”vivek”, bahut khoob
@Siddha Nath Singh,
Santoshji,
Fine expression of a lofty sentiment for ‘Mother”.
First recognition of a child when he/she enters the world and last word when he/she departs from this world – ‘Mother’ equivalent to ‘God’
Kusum
kusum ji ,you admired it ,thanks a lot !!
santosh bhauwala
अतिशय धन्यवाद !!
संतोष भाऊवाला
आदरणीय विवेक जी ,बहुत बहुत आभार !!बहुत सही कहा आपने…
जिसने भी ममता को पाया ,पाया इश्वर का आशीष
संतोष भाऊवाला
बड़ी सुन्दर मनभावन और संवेदनशील ” माँ ” पर इक अलग सी परिपूर्ण रचना …
बहुत प्रशंसनीय और उत्तम
इस रचना के लिए हार्दिक अभिवादन
आदरणीय विश्वनंद जी आपका आशीर्वाद मिला मन प्रसन्न हो गया , बहुत बहुत आभार!!
सदर संतोष भाऊवाला