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माँ
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माँ की ममता के बखान को शब्द कहां से लाऊं मै
ममता मई माँ के चरणों में शत शत शीष नमाऊं मैं |
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बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति
आज की माएँ क्या ऐसी ही ममता बच्चों पर करेंगे
बड़े होकर क्या ये ही बच्चे माँ को प्यार में रक्खेंगे ?
@Vishvnand,
— आदरणीय, पंक्तियाँ पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद |
आज के सन्दर्भ में आपकी आशंका सर्वथा उपयुक्त है |नए जमाने की हवा से नयी पीढी स्वयं को कितना बचा पाती है; कहना कठिन है | किन्तु कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाये तो माँ इस कसौटी पर सदैव ही खरी उतरती आयी है | क्योकि :- “कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति”
सुंदर भावाभिव्यक्ति – विधाता ने माँ के उच्चारण में अंतहीन स्वर दिया है क्योंकि माँ का प्यार अनन्त है, भाव अनन्त है-शीश तो हमें उसके सदा झुकाना ही है लेकिन उससे भी जरूरी है माँ में अदृश्य माँ को पहचानना -जैसे बिन बोले ही माँ बच्चे की हर बात को जान जाती है वैसे ही औलाद की भी माँ की भावनाओं के प्रति तीक्ष्ण दृष्टि होनी चाहिए – सुंदर रचना के बधाई
@sushil sarna,
Billoreji,
Short and sweet.
Kusum
@sushil sarna,
सरना साहेब ,माँ के विषय में आपकी इतनी सुन्दर गद्यात्मक अभिव्यक्ति पढ़ कर बहुत अच्छा लगा |
पंक्तियाँ पसंद करने के लिए बहुत धन्यवाद |
@kusumgokarn,
कुसुमजी,रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
कम शब्दों में सब कुछ कह दिया आपने,बधाई !!
संतोष भाऊवाला
@santosh bhauwala,
लम्बी लम्बी रचनाओं के शिल्पी से दो पंक्तियों पर प्रतिक्रिया पा कर अच्छा लगा |धन्यवाद |
अति सुन्दर! भाव स्पष्ट एवं पवित्र!