« In every heart and nest | VIOLINS WAIL » |
यादों की पुरवाई
Uncategorized |
यादों की पुरवाई
सांझ अचानक आया झोंका, यादों की पुरवाई का
तड़प उठा दिल, बरसा सावन नैनों से जुदाई का
बिना आपके भटक रहे यासो फ़िक्र के गाँव में
अब्रे खुश्क की छावों में पीछा करते परछाईं का
गम के अंधेरों की गिरफ्त से होगी कब रिहाई
खता क्या हुई ,दिल मोम ना हुआ हरजाई का
दिले शिकन के हुजूम में दीदारे आरजू हरपल रही
गूँज रहा कानों में सुर,उस मधुर गीत शहनाई का
शाखों पर आ गये परिंदे भी ,मीलों सफ़र तय कर
पर ना आई तेरी खबर, बस आसरा है खुदाई का
यासो फ़िक्र (चिंता और निराशा),अब्रे खुश्क (जलहीन बादल)
दिले शिकन (दिल तोड़ने वाले )
संतोष भाऊवाला
सुन्दर रचना भाव भी सुन्दर मजा आ गया पढ़ने का
और बहुत ये भाती मन को गर कुछ refinement होता rhythm का
आदरणीय विश्वनंद जी ,रचना पसंद आई बहुत बहुत आभार ,कृपया rythm ठीक कर मेरा मार्ग दर्शन कीजिये
सादर संतोष भाऊवाला
@santosh bhauwala ,
मेरा मानना है अपनी रचना में लय (rhythm) तो खुद ने ही refine करना उचित है .
सीधी सी बात है . पूरी रचना को लय में पढ़ने की कोशिश कीजिये. जिस पंक्ति में कुछ खटकन सी महसूस हो उसे अपनी तरफ से refine कर लय में लाने का प्रयास कीजिये l बस इतना ही
शाखों पर आ गये परिंदे भी ,मीलों सफ़र तय कर
पर ना आई तेरी खबर, बस आसरा है खुदाई का
बहुत खूब कहा…आखिरी शेर का जवाब नहीं
आदरणीय सुरेश जी रचना आपको पसंद आई अति शय धन्यवाद !!
संतोष भाऊवाला
अब्रे खुश्क की छावों में पीछा करते परछाईं का
बहुत सुन्दर!
अतिशय धन्यवाद परमिंदर जी !!
संतोष भाऊवाला