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आँख को अपनी छुरी मानिंद तुमने धार दी
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आँख को अपनी छुरी मानिंद तुमने धार दी
जो अनावृत अंग पाया है उसी पर मार दी.
सार्वभौमिक स्वास्थ्य की अवधारणा का हश्र ये
सोच भी सबकी बना है आप ने बीमार दी.
ज़ख्म खाने से अगर था खौफ तुमको इस क़दर
बंदरों के हाथ में क्यों फिर भला तलवार दी.
रोशनी के ख़्वाब ले के रात कर ली थी बसर,
भोर में पंछी ने कैसे ज़िन्दगी ही हार दी.
कह रहे थे कर के छोड़ेंगे चमन सर सब्ज़ वो,
चप्पे चप्पे पर चमन के खींच क्यूँ दीवार दी.
कोसने से झींकने से अब रहा क्या फायदा,
आपने ही आप को जैसी है ये सरकार दी.
बहुत बढ़िया
अर्थपूर्ण खूबसूरत
मान गए
हमने अपने आप ही जैसी है ये सरकार दी
हम ही बदलेंगे निकम्मी देखो ये सरकार भी
@Vishvnand, dhanyavad
ज़ख्म खाने से अगर था खौफ तुमको इस क़दर
बंदरों के हाथ में क्यों फिर भला तलवार दी.
सुंदर पंक्तियाँ और अच्छी कविता.
@U.M.Sahai, dhanyavad mahoday.
अच्छी मनोरंजक पंक्तिया
@rajendra sharma “vivek”, aabhaar
बहुत बढ़िया तरीके से सब जनता पर व्यंग है! सही है, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से आयेंगे?
@parminder, thanks