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आँख को अपनी छुरी मानिंद तुमने धार दी

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आँख को अपनी छुरी मानिंद तुमने धार दी 
जो अनावृत अंग पाया है उसी पर मार दी.
 
सार्वभौमिक स्वास्थ्य की अवधारणा का हश्र ये
सोच भी सबकी बना है आप ने बीमार दी.
 
ज़ख्म खाने से अगर था खौफ तुमको इस क़दर 
बंदरों के हाथ में क्यों फिर भला तलवार दी.
 
रोशनी के ख़्वाब ले के रात कर ली थी बसर,
भोर में पंछी ने कैसे ज़िन्दगी ही हार दी.
 
कह रहे थे कर के छोड़ेंगे चमन सर सब्ज़ वो,
चप्पे चप्पे पर चमन  के खींच क्यूँ दीवार दी.
 
कोसने से झींकने से अब रहा क्या फायदा,
आपने ही आप को जैसी है ये सरकार दी.

8 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत बढ़िया
    अर्थपूर्ण खूबसूरत
    मान गए

    हमने अपने आप ही जैसी है ये सरकार दी
    हम ही बदलेंगे निकम्मी देखो ये सरकार भी

  2. U.M.Sahai says:

    ज़ख्म खाने से अगर था खौफ तुमको इस क़दर
    बंदरों के हाथ में क्यों फिर भला तलवार दी.
    सुंदर पंक्तियाँ और अच्छी कविता.

  3. rajendra sharma "vivek" says:

    अच्छी मनोरंजक पंक्तिया

  4. parminder says:

    बहुत बढ़िया तरीके से सब जनता पर व्यंग है! सही है, बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से आयेंगे?

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