दया निधान दयालू दया करो भगवन |
कृपा निधान कृपालू कृपा करो भगवन ||
मैया को लेके मेरे घर भी तो आओ भगवन |
चरण की धूल से घर मेरा बना दो पावन ||
चरण की धूल का जो मर्म जाना केवट ने |
धुला के चरण बिठाया था नाव में उसने ||
बनी पाषाण अहिल्या को जिसने तारा था |
चरण कि धूल का वो प्यारा सा नजारा था ||
वन वन ढूंड रहा है गयन्द जिस कण को | (गयन्द=हाथी)
म्रेरे मनमें भि ललक पाने की उस ही धन को ||
अब तो स्वीकार करो मेरा निमंत्रण भगवन |
मैया को लेके मेरे घर भी तो आओ भगवन ||
भावपूर्ण मधुर और सुन्दर प्रभु की आराधना
हर सच्चे भाविक की जैसी होती आंतरिक मनोकामना
रचना के लिए हार्दिक अभिवादन और सराहना
@Vishvnand, धन्यवाद सर |