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ऐ खुदा वो खुदा भी पत्थर का खुदा निकला
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हमने समझा था जिसे अलग वो तुमसा निकला
वो सितमगर तुम से न कम ज़रा निकला
ऐ खुदा वो खुदा भी पत्थर का खुदा निकला
लाख चाह की डूबा दें गम को
फिर खुद ही बचाया जाकर
लाये फिर से घर
जो देखा के डूबता गम
तो गम अपना निकला
ऐ खुदा वो खुदा भी पत्थर का खुदा निकला
ये सुना था की लौटे नहीं जो जाया करते
याद बनके वो लौटे बार बार
और झूठा ये फलसफा निकला
ऐ खुदा वो खुदा भी पत्थर का खुदा निकला
हो गया राख
हवा में मिल गयी मेरी ख़ाक
होके कतरा कतरा भी न वो दिल से मेरे निकला
ऐ खुदा वो खुदा भी पत्थर का खुदा निकला
This poem must be written in a mood of sadness and depression.
Cheer up. Our own fate/karma is responsible for our sorrows.
Kusum