« अब न रहे कमनीय कलेवर | मैं चाहता हूँ मुझ पर भी पतझड आये » |
कुछ लोग रहते थे पड़ोस में
Hindi Poetry |
कुछ लोग रहते थे पड़ोस में
कहीं खो गए हैं
या वो सब सो गए हैं
या अजनबी हो गए हैं
बत्तियां बंद है
पर नहीं लगे हैं ताले
उन दरवाज़ों पर
पड़ने लगा है सन्नाटा भरी
शहर की आवाज़ों पर
आहट नहीं सुनती कोई अब इन मकानों में
शोर से ज्यादा चुभती है ख़ामोशी अब इन कानों में
कुत्ते जो भोंकते थे इन गलियों में
वो क्यूँ आज रो रहें हैं
कुछ लोग रहते थे ………………………………..
रचना क्या कहना चाहती है
आयी न बात ठीक कुछ समझ में