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चल मेरे साथी चल
Hindi Poetry |
चल मेरे साथी चल
जंगल की ओर चल
दूर कही शहर की भाग दौर से
शहर देल्ही और लाहौर से
न मर्यादा का बंधन हो
न शासन प्रशासन का उलझन हो
जहाँ मन उन्मुक्त हो और भाव व्यक्त हो
पेड़, पंछी, पहाड़ और नदी की कल-कल
चल मेरे साथी…
प्रीत की न कोई रीत हो
मनमीत हो और प्रीत का गीत हो
प्रकृति की अद्भुत आनंद की अनुभूति
जंजाल है प्रकृति की अजब कृति
मोह माया के बंधन से परे
हो उन्मुक्त मन का पंछी उड़े
जो चाहे मन वो करे हम हरपल
चल मेरे साथी…
शशिकांत निशांत शर्मा ‘साहिल’
Shashikant Nishant Sharma