« जिंदगीभर… | WALKING IN WOODS » |
जीवन पतझर
Anthology 2013 Entries, Hindi Poetry, Jun 2012 Contest |
पतझर आया, बिछी धरा पर पीतपर्णी सेज
बहा ले गयी वैभव सकल, पछुवा हवा तेज
फूल पत्ते के बिना हुई सूनी शाख की दुनिया
बौराई ,कुम्हलाई सी ,बैरन सी लुटी बगिया
प्रकृति रानी को देने सन्देश, आया बसंत दूत
एक मौसम आये दूजा जाये बदलती रहती रूत
हरी कोपलें होगी प्रस्फुटित ,खिलेगी कलियाँ
आएगी बहार एक बार फिर ,उगेगी फुनगियाँ
पतझर का आना ही बसंत का मूल्य समझाता
बीज का भण्डार भर प्रकृति का नियम निभाता
सुमन अपने जोबन पर पहुँच कर भी गर,न बिखरा
जन्म निरर्थक,प्रभुपाद अर्पण होकर भी न निखरा
बसंत का फूल भी रंगरूप गंध कर विसर्जित
सूख कुम्हला, होता उसी माटी को अर्पित
नियमबद्ध जो जहां से आया,होता उसी में लीन
ईश्वर अंश जीव, ईश्वर में होता विलीन
वैभव भरे शुष्क जीवन से तो बेहतर पतझर
है सकून जब बहे अपनों के प्यार का निर्झर
आशाओं के सहारे कटता नीरस जीवन का सफ़र
उन्ही की बाहें थाम, पार होता जीवन पतझर
संतोष भाऊवाला
kedar nath singh kee kavita kee pankti yaad aa gayi-
झरने लगे नीम के पत्ते ,
बढ़ने लगी उदासी मन की .
आदरणीय सिद्धनाथ जी , बहुत बहुत आभारी हूँ !
अच्छा साहित्य !
आदरणीय हरीश जी आपको रचना पसंद आई, जानकर बहुत ख़ुशी हुई ,अतिशय धन्यवाद !
बहुत भाया रचना का कथन भावार्थ और कवित्व
पतझड़ ही अंत फिर जन्म हर जीव का यही होत है तत्व
सुन्दर मनभावन रचना के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय विश्वनंद जी ,आपका आशीर्वाद मिला, कृतार्थ हुई ,कोटिश: आभार !!
श्रेष्ठ रचना ,सुन्दर वर्णन बधाई |
अतिशय धन्यवाद !!
Gahraai se padi rachanaa to man ko bahut bhaai shreshth rachanaa
ke liye aapko badhaai
आदरणीय विवेक जी ,रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ !!