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जीवित या मृत ??

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यह टिक टिक करती घड़ी
एहसास दिलाती है कि हम हर पल
मर ही तो रहें हैं
एक पल हमारी ज़िंदगी से कम हो गया है

क्या हम जी रहें हैं ?
अगर हम नाच नहीं रहे,गा नहीं रहे
प्रकृति से जुड़ नहीं रहे,महसूस नहीं कर रहे
उड़ नहीं रहे, बंध के जी रहे हैं
तो मर ही तो रहे हैं ?

12 Comments

  1. Vishvnand says:

    वाह वाह बहुत खूब
    गहन और बढ़िया अर्थपूर्ण
    अभिवादन

    ऐ जीनेवाले सोच जरा ऐसा जीना क्या जीना है
    गर मर मर कर ही जीना है तो जीकर भी क्या करना है
    जीना है हमें यहाँ जी जी कर जब मौत आये मरना हंसकर …

    यहाँ “जी जी कर” माने जी जी कह कर ( चापलूसी कर नहीं) पर जैसा पोस्ट की पंक्तियों में बताया है उस तरह सा कुछ अपना जीवन जी कर 🙂

  2. s n singh says:

    bahut khoob, sach hai ki zindagi kitne dinon kee hai iske bajaay un dinon me zindagi kitni hai ye dekhna zaroori hai.

  3. Harish Chandra Lohumi says:

    kam shabd ! saarthak kruti !!

  4. yugal gajendra says:

    एक उदास गीत की तरह,है आपकी कविता माफ़ करियेगा.
    “ओशो” कहते है, जियो जीवन को,पियो जीवन को.तटपर रूककर सोचने में न पड़ो मझधार में डुबो.
    कविता में तो जीवन की तलाश होनी चाहिए,उसकी अर्थवत्ता की तलाश.
    शुभकामनाये.
    युगल गजेन्द्र

    • renu rakheja says:

      @yugal gajendra, Thanks for your comment Yugal ji. Poetry me agar ek hee tarah kaa genre hoga…to kya maza hai? har tarah kee poetry honee chahiye.jaagrut karne vaalee….virah….mohabbat….jeevan ko peene vaalee etc etc…..
      Sadhguru ne kaha hai…..
      ~In conclusion there is death….Confusion is better than conclusions. In confusion, there is still a possibility. In conclusion, there is no possibility ~

      • yugal gajendra says:

        रेणुजी,
        कविता में विविधता के तर्क से मै सहमत हूँ,कविता में आपकी निजता भी है, वह आपकी अपनी अभिव्यक्ति है, मेरा आशय तो बस इतना था,की आप में सम्भावना है, यह कविता और भी बेहतर और शसक्त हो सकती थी. शुभकामनाओ के साथ.

    • Vishvnand says:

      @yugal gajendra ,
      मुझे तो लगा ये रचना सुन्दर तरह से बता रही है जीना क्या है l उदास गीत की तरह नहीं है

      “क्या हम जी रहें हैं ?
      अगर हम नाच नहीं रहे,गा नहीं रहे
      प्रकृति से जुड़ नहीं रहे,महसूस नहीं कर रहे
      उड़ नहीं रहे, बंध के जी रहे हैं” 🙂

      • yugal gajendra says:

        मृत्यु तो नियति है,और जीवन क्या है,सबकी अपनी परिभाषा, अपनी दृष्टि,अपनी राह..धन्यवाद !

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