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जो पतझड़ हुआ सब वही का वही….
Hindi Poetry, Jun 2012 Contest |
चार दिन ही सही चांदनी तो रही,
फिर वही फासले फिर हकीकत वही.
बारिश तो थमी पर नमी रह गई,
कुछ बातें बची हैं कही अनकही.
कलियाँ खिलकर फूल भी बन गई,
जो पतझड़ हुआ सब वही का वही.
कुछ हमारी थी कुछ उनकी खता,
देख लो चाहे सब खाता – बही…
बहुत खूब
रचना मन भायी
पतझड़ के पत्तों ने भर दी जीवन की खाता – बही
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