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जो हो न अपना उसे देख मन क्यों पागल
Hindi Poetry |
जो हो न अपना उसे देख मन क्यों पागल
ये शहर है या कोई ख्यालों का जंगल
हर गुलाब काँटों पे खिलता है
ऐसी मर्यादा में घिरता है
लुट रहा जग कितने सपने
गढ़ रहा कई झूठें अफसाने
व्यंग बाण लगता है, दिल होता है घायल
जो हो न…
प्रीत के लिए नित तरसे मन
सावन की तरह बरसे नयन
जब तक है ये तन मन यौवन
‘साहिल’ लाखों है अपने सजन
जाने क्यों देख उसे बजे मेरे पायल
जो हो न…
सजाया रूप और किया सिंगर
जाने किसका है अब इंतजार
हर शख्स लगता हुस्न का सौदागर
झूठें सब्द बन गए इश्क-मुहब्बत-प्यार
जी करे जब मन कर लेना मेरा नंबर डायल
जो हो न…
शशिकांत निशांत शर्मा
{Written after reading(not text) the dreams and aspirations of girls entrapped in Red light areas during the first vacation during my stay at Delhi. Ideas and emotions are theirs so written in active voice}