« »

मौसम-राग

0 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 50 votes, average: 0.00 out of 5
Loading...
Hindi Poetry, Jun 2012 Contest

इए जीवन सी प्रकृति, जैसे संगीत के विभिन्न राग,
हर पंक्ति पर विद्यमान, अनेक उतार-चढ़ाव,
कभी है भूख, कभी प्यास
दुःख जाता दे सुख की आस!

गीतों की धुनों सी यह कुदरत
मौसमों के गीत है गा रही
शीत, ग्रीष्म, सावन, पतझड़,
हर राग में यह गुनगुना रही!

पत्तों से लदी डालियों का रंग है बहार
सूखे पत्तों की सरसराहट पतझड़ की कहार|
नंगी डालियाँ दे चुकीं धरती को उपहार
पक्षी बेबस ढूंढ रहे हरी छत का आधार|

पवन का हर वेग मचाता सडकों पर कोलाहल
पत्तों का हजूम गा रहा राग शुद्ध बिलावल|
आवारा कुत्तों सी घूम रही यह विचित्र मंडली
हरियाली को ढूंढ रही हर मंडलाती तितली|

भूरे रंग ने ले लिया हरे रंग का स्थान
इसको फिर छीनेगा हरित वर्ण दीप्तिमान!
कोमल कपोल फिर होंगे अंकुरित इक बार
फिर लहराएंगी तितलियाँ,
कूकेगी कोयल राग मल्हार!!

6 Comments

  1. siddha nath singh says:

    madhurim aur mohak varnan

  2. Abhishek Khare says:

    दुःख जाता दे सुख की आस! Bahut hi sahi panktiyan, aur abhut hi khoobsurat rachana.

  3. Vishvnand says:

    अति सुन्दर रचना के भाव मन बहुत बहला गए
    अर्थपूर्ण मधुर विवरण गीत सा ये गा गए ….

    “गीतों की धुनों सी यह कुदरत
    मौसमों के गीत है गा रही
    शीत, ग्रीष्म, सावन, पतझड़,
    हर राग में यह गुनगुना रही!”… सन्दर्भ में खूबसूरत कल्पना

  4. yugal gajendra says:

    जीवन और प्रकृति के रिश्तो की पड़ताल करती,सुन्दर कविता.
    बधाइयाँ जी,

  5. U.M.Sahai says:

    जीवन और प्रकृति के रंगों का सुंदर चित्रण करती एक अत्यंत मोहक रचना, हार्दिक बधाई, परमिंदर जी.

  6. parminder says:

    सिद्ध जी, अभिषेक जी, विश्व जी,युगल जी और सहाय जी आप सब नें मेरी हौंसला अफजाई की उसका बहुत-बहुत शुक्रिया|

Leave a Reply