« प्रलय | ये किस मुक़ाम पे आखिर हयात लायी है. » |
मौसम-राग
Hindi Poetry, Jun 2012 Contest |
इए जीवन सी प्रकृति, जैसे संगीत के विभिन्न राग,
हर पंक्ति पर विद्यमान, अनेक उतार-चढ़ाव,
कभी है भूख, कभी प्यास
दुःख जाता दे सुख की आस!
गीतों की धुनों सी यह कुदरत
मौसमों के गीत है गा रही
शीत, ग्रीष्म, सावन, पतझड़,
हर राग में यह गुनगुना रही!
पत्तों से लदी डालियों का रंग है बहार
सूखे पत्तों की सरसराहट पतझड़ की कहार|
नंगी डालियाँ दे चुकीं धरती को उपहार
पक्षी बेबस ढूंढ रहे हरी छत का आधार|
पवन का हर वेग मचाता सडकों पर कोलाहल
पत्तों का हजूम गा रहा राग शुद्ध बिलावल|
आवारा कुत्तों सी घूम रही यह विचित्र मंडली
हरियाली को ढूंढ रही हर मंडलाती तितली|
भूरे रंग ने ले लिया हरे रंग का स्थान
इसको फिर छीनेगा हरित वर्ण दीप्तिमान!
कोमल कपोल फिर होंगे अंकुरित इक बार
फिर लहराएंगी तितलियाँ,
कूकेगी कोयल राग मल्हार!!
madhurim aur mohak varnan
दुःख जाता दे सुख की आस! Bahut hi sahi panktiyan, aur abhut hi khoobsurat rachana.
अति सुन्दर रचना के भाव मन बहुत बहला गए
अर्थपूर्ण मधुर विवरण गीत सा ये गा गए ….
“गीतों की धुनों सी यह कुदरत
मौसमों के गीत है गा रही
शीत, ग्रीष्म, सावन, पतझड़,
हर राग में यह गुनगुना रही!”… सन्दर्भ में खूबसूरत कल्पना
जीवन और प्रकृति के रिश्तो की पड़ताल करती,सुन्दर कविता.
बधाइयाँ जी,
जीवन और प्रकृति के रंगों का सुंदर चित्रण करती एक अत्यंत मोहक रचना, हार्दिक बधाई, परमिंदर जी.
सिद्ध जी, अभिषेक जी, विश्व जी,युगल जी और सहाय जी आप सब नें मेरी हौंसला अफजाई की उसका बहुत-बहुत शुक्रिया|