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ये राहे शौक़ भला कैसे होगी तय आखिर
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ये राहे शौक़ भला कैसे होगी तय आखिर
गयी तो उम्र बचा ही कहाँ समय आखिर.
न एक पाँव भी आगे निकाल पाए हम,
ज़हन पे हावी रहा इक न एक भय आखिर.
कभी हमें भी चखाओ फ़तेह की लज्ज़त,
हमीं करेगे कहाँ तक तुम्हारी जय आखिर.
बहस छिड़ी है तो अंजाम तक इसे लाओ,
न ऐसे बीच बहस दो बदल विषय आखिर.
गुनाहगार नहीं तुम तो फिर चलो ढूंढें,
लुटा शहर है अगर फिर कोई तो है आखिर.
जो तू नहीं तो बताएगा कौन फिर साकी,
जो जाम रीता, गया कौन पी ये मय आखिर.
ये दिल खराश जो मंजर रहे दिखाई दे,
कि पत्थरों के भी फट जायेंगे ह्रदय आखिर.
वाह ! क्या बात है सिंह साहब ! बनी रहे.
@Harish Chandra Lohumi, dhanyavad harish ji bahut der kee mehrabaan aate aate.
बड़े अर्थपूर्ण खूबसूरत हर शेर
बहुत मन भाये, हार्दिक बधाई
“जो तू नहीं तो बताएगा कौन फिर साकी,
जो जाम रीता, गया कौन पी ये मय आखिर.” बहुत खूब
देश को सोने की चिड़िया कहते रहे
क्यूँ हैं गरीब, धन कौन कहाँ ले गया, आखिर ?
@Vishvnand, baat ke marm tak pahunche aap, dhanyavad
ये राहे शौक़ भला कैसे होगी तय आखिर
गयी तो उम्र बचा ही कहाँ समय आखिर.
न एक पाँव भी आगे निकाल पाए हम,
ज़हन पे हावी रहा इक न एक भय आखिर.
बह क्या बात है |
आम आदमी के ह्रदय की बात कहती सुन्दर रचना |
बधाई |
@dr.o.p.billore, DHANYAVAD Dr SAHAB.