कविता क्या होती है, नहीं जानता हूँ, भला-बुरा,अपना-पराया और इसी तरह के कई विलोमों के साथ खेलता रहता हूँ. कुछ लिखने की चेष्टा करता हूँ तो और भी फंसता चला जाता हूँ. फिर सोचता हूँ -शायद यही कविता हो जो मुझे रास न आ रही हो . कुछ सामान्य होने का प्रयास करता हूँ, परन्तु हारे हुए जुआरी की तरह पुनः इस चक्रव्यूह में फंसने का जी करता है. पेशे से इंजीनियर हूँ लेकिन दिल से एक इंसान हूँ.
वाह क्या अंदाज़ है
सोचते सोचते नही लगा पा रहे विचारों को लगाम
बड़ी रगीली रचना लगी सुन्दर चित्र के साथ ये आपकी “श्वेत और श्याम”
देर आये दुरुस्त आये
अपनी छबि साथ लाये
@Vishvnand, हार्दिक आभार और धन्यवाद सर ! आशीर्वाद बनाए रखियेगा .
shaam dhalne pe yahi rang bache rahte hain
aap kya jaano ki ham kaun sa dukh sahte hain.
@siddha nath singh, धन्यवाद सिंह साहब .
रंग रंगीला ले गया दे व्याकुलता को विराम |
पुनः रंग भरलो प्रिये शेष श्वेत और श्याम ||
सुन्दर रचना | बधाई ||
@dr.o.p.billore, हार्दिक आभार डा० साहब.
कविता व फोटो दोनों ही बहुत प्यारी हैं, बधाई हरीश जी.
बहुत बढिया रचना