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तुमने कहा था

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तुमने कहा था ….कि जब मेरी आँखों से ज़िंदगी देखते हो
तो सिनेमास्कोप जैसी रंगीन हो जाती है
अब तुम नही फिर भी कोशिश तो करती हूँ कि तुम्हारे नज़रिए से ही देखूं
नम आँखों से रंग और गहरे हो जाते हैं

9 Comments

  1. Vishvnand says:

    वाह वाह बहुत खूब
    अति सुन्दर उत्कृष्ट चित्र और उसपर शब्दावली भी
    मन लुभावनी

  2. sushil sarna says:

    बहुत समय बाद आपकी रचना आई और अपना जादू कर गयी- चंद पंक्तियाँ और असीमित भाव-लगता है नदी अपनी बूंदों में सागर को समेटना चाहती है-सृष्टी को अपनी बाहों में समेटना चाहती है-सुंदर रचना के लिए जितनी तारीफ़ की जाए, कम है- फिर भी हार्दिक बधाई रेनू जी

  3. U.M.Sahai says:

    एक भाव-भीनी अच्छी रचना, बधाई रेनू जी.

  4. Prem Kumar Shriwastav says:

    खुबसूरत पंक्तिया.

  5. s.n.singh says:

    बहुत ही प्रभावपूर्ण और विम्बत्मक रचना, मुझे भी कहने को प्रेरित कर गयी कि-
    रंग तो वो गया समेट सभी पर ये आंसू तो प्रिज्म जैसे हैं ,
    सच का एक रंग है मगर उसको सात रंगों में ये दिखाते हैं ,

  6. yugal gajendra says:

    वाह-वाह,बहुत सुन्दर, प्रसंशा कर देना सहज है,अक्सर ये लिखने वालो को भ्रमित ही करती है.
    इसलिए कविता के शिल्प और कथ्य पर केन्द्रित कीजिये.
    बधाई.

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