आपकी ज्योति

ज़िन्दगी में अन्धेरा था
आपकी छोटी सी ज्योति ने इतनी रौशनी दी
और मेरे अन्दर समा गयी ,मेरी पहेली सुलझा दी
इतनी आसान और मैंने बरसों बिता दिए….सुलझा ना पाई
मैं नाच रहीं हूँ ,मेरा दिल गा रहा है
हज़ारों फूल खिल रहे हैं
मेरा जिस्म जैसे मेरा रहा ही नहीं
मैं तुम हूँ ,यह जहां हूँ ,ब्रह्माण्ड हूँ
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moment of realization must have come
आदरणीय रेनू जी ,आत्मज्ञान को बखूबी दर्शाती रचना अति सुंदर!!बधाई
संतोष भाऊवाला
वाह वाह
बहुत खूब
मैं ब्रह्माण्ड में और ब्रह्माण्ड मुझमे ….
प्रेम रस से सराबोर रचना पड़कर कबीर की साखी याद आ गई |
लाली मेरे लाल की, जित देखो तित लाल, लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल।। ….बधाई |
अद्वितीय रचना-जिस्म और रूह दोनों का एकाकार-बधाई
वाह , उत्तम रचना, बधाई, रेनू जी.