« Here Are My Eyes….. | छोड़ गए हनुमान – श्रद्धाँजिली दारा सिंह को » |
चुनौती
Hindi Poetry |
सिक्कों की तरह फेंकते गए मेरे सामने
इम्तहान एक के बाद एक तुम
भिखारी की तरह समेटता गया
अपने आस-पास से चुन-चुन|
थका न मैं, रुका न मैं
संग्राम हर लड़ा मैं|
लड़ाइयाँ कोई छोड़ी न कभी
पीठ कभी दिखाई न कभी|
क्या इंतज़ार है तुम्हें
मेरी ज़िंदगी और संकीर्ण होने का?
क्या घोर संतोष है हो रहा
देख मेरे चारों और उपजे शूलों का?
क्या इंतज़ार अभी भी
मेरी आँखों की चमक मुरझाने का?
क्या आव्वाहन कर रहे हो
मेरी चमकती मुस्कराहट को जाने का?
क्या ताक में अब भी
मेरे नैनों से तरलता को प्रवाह होने का?
क्या रुष्ट अभी भी
मेरी भृकुटी तनाव-रहित देख कर?
क्या अभी भी अचंभित
मेरी आस्था के अटूट बल पर?
क्या भरोसा नहीं तुम्हें
मेरे तुम पर अटूट विश्वास पर?
अब तसल्ली हो गयी हो
तो बस कर दो
यह चुनौतियों की बरसात बंद कर दो
पीछे होना मैंने सीखा नहीं
हिम्मत तुमसे जो ली छोड़ी न कभी|
बेबाक, बेख़ौफ़, झेले हैं सीने पर वार,
अब और क्या-क्या दिखाओगे यार???
वाह वाह बहुत खूब परिपूर्ण भाव प्रवाह
अति सुन्दर रचना और प्रभाव
इससे ज्यादा और असली परिपूर्ण चुनौती क्या हो सकती है
रचना अत्यंत मनभावनी
Hearty Kudos
वाह वाह वाह …………………………………….वाह |
इसे कहते है उद्गारों की अभिव्यक्ति |
भावों का ऐसा वर्णन ?
वेदना विवशता श्रद्धा और प्यार का अतुलनीय साहित्यिक वर्णन |
अनेकानेक बधाई |
shaili shandaar.
Hullo parminderji ,
Great lines and Great attitude … just loved it .
sarala
वाह क्या बात है, परमिंदर जी. अति-उत्तम.
आप सब का अनेकानेक धन्यववाद आप सब ने इतना स्नेह दिखाया!
सब कहते हैं न की उसे अपना काम करने दो, तुम अपने फ़र्ज़ निभाये जाओ, तो यह कोई आसान नहीं, पर बहुत ढीठ तो बनना ही पडेगा न? 🙂
बहुत ही अच्छा