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दूध के दांत
Hindi Poetry |
दूध के दांत
डाक्टर साहब !
मुझे ये वाला दांत निकलवाना है.
इसे निकलवाने की क्या जरूरत है बेटा !
कच्चा दांत है,
दूध के दांत खुद ही निकल जाते हैं बेटा.
अपनी फीस बताइये डाक्टर साहब !
ज्यादा टाल मटोल मत कीजिए ,
परेशान हो चुका हूँ मैं,
इन दूध के दांतों से.
जब भी कोई डिसीजन लेने जाता हूँ,
माँ-बाप भी ताने देते हैं-
कहते हैं-
“दूध के दांत तो टूट जाने दो ” .
आज मैं तुड़वा कर ही रहूँगा,
दूध के इस आखिरी दांत को .
अपनी राह के रोड़े को.
“बेटा अब बड़ा हो रहा था “.
***** हरीश चन्द्र लोहुमी
सुन्दर व्यंग
बहुत मन भाया
उस बेचारे बच्चे को क्या मालून नए दांत भी बुजुर्ग होते होते बचाने या निकलवाने कितनी आफत और पैसे बर्बाद होते हैं और बुजुर्ग भी बिन असली दांत के बच्चे सामान हो जाते हैं 🙁
but as the saying goes-there is no shortcut to experience. Janaab Akabar Illahabaadi kah gaye hain-
तुझे ये डिग्रियां बूढों का हमसिन कर नहीं सकतीं.
बहुत सुंदर ब्यंग ,अच्छा लगा बधाई !!
संतोष भाऊवाला
एक नटखट रचना-अच्छी लगी
अच्छा व्यंग्य.
वास्तविकता है! बेचारा बच्चा क्या जाने आगे क्या-क्या पापड बेलने हैं!