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—————-// मर्यादाओ का मोल //————-
Hindi Poetry |
दायरों में सिमटी हुई जिन्दगी ,जानती है मर्यादाओ का मोल /
बंट जाये रिश्ते ,हो देह के हिस्से ,संबंधो को ना यु तोल //
सीमाओ का जब भी उलंघन हुआ /
शिथिल कही कोई बंधन हुआ /
विष व्यापित कोई चन्दन हुआ /
सिसकी कोख कही महाक्रन्दन हुआ /
मचला सागर ,गरजा फिर आसमां ,धरा भी धुरी पर गई फिर डोल //
दायरों में सिमटी हुई जिन्दगी ,जानती है मर्यादाओ का मोल /
बहुत अच्छे
रचना मन भायी
जानती है जिन्दगी मर्यादाओ का मोल
फिर भी हम क्यूँ करते रहते मर्यादाओ का बंटा बोल
और प्रयावरण और स्वस्थता बिगाड़, लेते अशांति और दुःख मोल ?
@Vishvnand,
dhanywad Visvanandji
Bahut acchi abhivyakti, aabhar.
@Abhishek Khare,
धन्यवाद अभिषेक जी
khoobsurat
@siddha nath singh,
बहुत बहुत आभार सिंह साहब
मर्यादा का मोल विभिन्न बिम्बों के माध्यम से बखूबी उभर कर आया है बधाई !!
संतोष भाऊवाला
@santosh bhauwala,
धन्यवाद संतोष जी
good one with deep feelings-badhaaee
@sushil sarna,
बहुत बहुत आभार सुशीलजी
मर्यादाओं का मोल तो वही जानते हैं जो उनकी पालना करते हैं, बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
आभार परमिंदर जी
O narayan bhai,
come on, sod off!
vertical thinking is a passe now.
Its an era of lateral -out of the box- thinking!!
i guess you getting the kernel purport in the offing!!
b.t.w. laal colour ki hero puch shakti hai ya nikaal di?