« आह लाजिम नहीं सुनाई दे. | ये भरा बाज़ार है……….! (गीत) » |
लफड़ा
Hindi Poetry |
जाने क्यों आज कल लोग खुद से ही दुश्मनी निभातें है
अपना हो या पराया हर दुसरे के झमेले में टांग अडाते है
अभिमानु बनकर घुसते है चक्रव्यूह में
जीवन भर के अस्त्र-शस्त्र पर धार लगते है
गलती से जीत गए तो
बाकायदा पर्चे छपवाते है
की,देवता हो या दानव
सब युद्ध की रणनीति हमसे ही बनवाते है
और हार गए तो …..
तो क्या हुआ कौनसा हमारा पर्सनल मामला था
खिसियाकर ये कहते नजर आते है
ये तो छोटे-मोटे मामले है भाई
कभी-कभी यमदूत साक्षात् खड़ा हो जाता है
”ये ही हर लफड़े की जड़ है ”
पहले ऐसों का ही टिकट कटाता है
मेरी मानो भाई, तो जान बचा लो यारों
खुद ही अपना पैर कुल्हाड़ी पर मत मारो
ये दुनिया तुमसे कई कदम आगे है
जहाँ तुम उठते हो ,
वंहा तेज कदम से भागे है
दूसरों को छोड़ो
खुद अपने ही लाजवाब दुश्मनी निभातें है
रोने को मांगते है कन्धा,
और, चुपचाप बन्दुक चलाते है
अहसान तो छोड़ो,इल्जाम भी तुम पर लगते है
साक्षात् महाभारत के कान्हा हो तुम
तुम्हे चढ़ाएंगे ऐसे,
अंत में समझ में आएगा
की तुम तो यों फसे
द्रोपदी नादानी में हंसी थी जैसे ||
अति सुन्दर आज के लोगों और हालात के बारे में अर्थपूर्ण हास्यान्वित अभिव्यक्ति
रचना और सहज बहाव में लिखने और समझाने की style बहुत मन भायी
इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई
आजकल का जीवन ही बन गया है इक लफड़े पर लफडा है
लोगों का पैसे के पीछे लोभ में भागने का हर जगह झगड़ा है
सच में सात्विक लोगों का ही जीवन आजकल सुखी और तगड़ा है
मीडिया ये समझाने से भागती है क्यूंकि उनका इसमें स्वार्थ बहुत बड़ा है