« Balk this dealing !!! | तुमको देखे हुए एक ज़माना बीत गया………… » |
सब कुछ जैसे ठहरा है आजकल
Hindi Poetry |
सब कुछ जैसे ठहरा है आजकल
सूरज जैसे जलकर भी नहीं जलता
चाँद जैसे चलकर भी नहीं चलता
घड़ियाँ दिन-रात से परे है
वक़्त इन सबसे हटकर देता पहरा है आजकल
सब कुछ जैसे ठहरा है आजकल |
चाहकर भी किसी को सुन नहीं पाती
गीत कोई पुराना गुन नहीं पाती
सरगम हो गयी है बेआवाज
मन इन सबसे बहरा है आजकल
सब कुछ जैसे ठहरा है आजकल |
आंसूं आँखों का रास्ता गए भूल
कुछ सही भी लगता है ऊल-जलूल
फब्तियां अधर खिला जाती है
दर्द इन सबसे गहरा है आजकल
सब कुछ जैसे ठहरा है आजकल |
झाँका जब भी खुद में,हर बार मैं ही नजर आई
जाने क्यों दुसरे चाहते है कोई और परछाई
सपने को गहरी नींद सोना आ गया
आइना इन सबसे छुपता चेहरा है आजकल
सब कुछ जैसे ठहरा है आजकल ||
achhi kavita.
@Siddha Nath Singh, thankyou sir.
सुन्दर रचना, बहुत मन भायी,
इक mood की विशेष सुरुचिपूर्ण (elegant) अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई …
@Vishvnand, शुक्रिया सर |
अच्छी कविता.
@jaspal kaur, धन्यवाद जसपाल जी |