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इन चिरागों से कहो देख लें नीचे अपने..

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इक अँधेरा जो गया छूट है पीछे अपने.
पाँव अपनी ही तरफ बारहा खींचे अपने. 
 
सख्त लाजिम है तेरा अब्रे करम बरसे भी,
खेत अश्कों से फ़क़त जांय न सींचे अपने.
 
आमदे मौसमे गुल की है सुनी जिस दम से,
हंस के फैला दिये  कुदरत ने गलीचे अपने.
 
होके मगरूर मटकते हैं जो रोशन रुख पे,
इन चिरागों से कहो देख लें नीचे अपने.
 
हम कि मुश्ताक़ मुकाबिल हैं खड़े मुद्दत से,
खोल के देख मेरे यार दरीचे अपने.
 
इम्तिहाँ ज़ब्त का लेने पे है आमादा तू,
और कब तक मैं रहूँ दांत यूँ भींचे अपने.
 
योग और क्षेम वहन करने का वादा  करके,
क्यूँ दृगों को है मेरे हाल पे मीचे अपने.

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