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ग़ज़ल: अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं
Hindi Poetry |
अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं
हम उजालों से जो दूर भगते हैं
अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं…
पहुँच में नहीं है दिन का आसमां
रात भर छत कमरे की तकते हैं
अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं…
सूखे रहे तजुर्बों की बारिश में भी
दिल के समंदर आँखों छलकते हैं
अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं…
हाथ अपने जाने क्यों जंचती नहीं
वो घड़ी जब खुश ज़रा से रहते हैं
अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं…
बिन नुमाइश कोई समझे न दर्द
ज़ख्म क्यूँ वो चुपचाप लहकते हैं
अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं…
न खुद से खफ़ा न जहाँ से ही हम
ज़िंदगी से कुछ उखड़े-उखड़े रहते हैं
अंधेरों से सगे रिश्ते से लगते हैं…
ग़ज़ल बड़ी खूबसूरत लगी
हार्दिक बधाई
आपने कमेन्ट देना क्यूँ बंद किया है जी ? 🙂
दादा…बहुत बहुत आभार, सराह के लिए…
कमेन्ट न कर पाने की एक ही माकूल वजह है…पिछले २-३ माह से स्वास्थ्य खराब होने के चलते (पिछले माह सर्जरी सहित) लग के बैठ के पढ़ना नहीं हो पा रहा. जब पढता हूँ तो बहुत समर्पित हो के और एक साथ काफी पढता और दिल से कमेन्ट भी करता हूँ…
पर आगे निराश नहीं करूँगा…जल्द से जल्द!!! आशीर्वाद बनाएं रखें!!!
@Reetesh Sabr ,
तकलीफ और सर्जरी की बात जानकार बहुत दुःख हुआ .
जानना थी वजह पर मस्ती में icon डल गया
क्षमा करें और हमारी प्रार्थना है भगवन से कि आप जल्दी पूर्ण तरह से स्वस्थ हो जायं .
स्वस्थ होना और रहना अत्यंत जरूरी है कमेन्ट कोई priority नही है ध्यान रखिये और जैसे रचनाये उभरे जरूर पोस्ट करिए इसका स्वास्थ्य पर उत्तम परिणाम होता है
rishta hi banana tha to roshni door nahin hi
kamre kee khidkiyan to kholte, aap mazboor the vo mazboor nahin thi,
daudi chali aati
achchhi bhali aati
aur aap kee bekali jaati.
सिद्ध जी…रौशनदान दिखाने के लिए शुक्रिया! पर मुझे यकीं है एक सहज अनुभूति और अभिव्क्यती के तौर पे अगर ये बुझे हुए अँधेरे लगते हैं..तो इन्हें भी हम सहजता से स्वीकार करने में कोई गुरेज़ नहीं करेंगे.
बाक़ी मैं शुक्रगुजार हूँ कि एक रौशन ख़याल दिया आपने टिपण्णी में.