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***तुझे सांकल नहीं लगाऊँगी…..***

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Hindi Poetry

 ***तुझे सांकल नहीं लगाऊँगी…..***

 

ठक,ठक

ठक,ठक

नहीं, 

आज मैं तुझे 

सांकल लगाने के लिए

 नहीं उठूँगी 

आखिर क्योँ उठूँ

तेरी दहलीज 

पार करके ही तो 

मेरा प्रेम रुसवा हो कर 

चल गया 

और 

तूं चुप चाप देखता रहा 

उसके वियोग में 

मेरी आँखों का 

सावन बरसता रहा

और

तूं चुप चाप देखता रहा

मेरी आँखों का काजल

उसके क़दमों को 

रोकने के लिए 

उसकी राह में 

बिखरता रहा 

और 

तूं चुप चाप देखता रहा 

जिस पेड़ के नीचे 

मैं बरसात में 

उसके संग भीगे 

अन्तरंग पल 

छोड़ आयी थी 

उसी पेड़ के 

सूखे पत्ते को 

तूने मेरे आँगन

में क्योँ आने दिया

तेज हवा से 

कंपकपाता   

उसका बदन देखकर 

मुझे बरसात में 

भीगी कम्पन लिए 

हौले हौले बढ़ते 

मिलन को व्याकुल 

होठों की याद 

दिलाकर हर पल 

बेचैन कर रहा है 

और तूं 

हवा के साथ 

खिलवाड़ में मस्त है 

जानती हूँ 

तूं अपनी आवाज से 

तमाम रात 

मेरी पलकों पे 

अपना कहर ढायेगा

तेरा ये सितम सह लूंगी

मगर

तुझे सांकल नहीं लगाऊँगी,तुझे सांकल नहीं लगाऊँगी…..

 

सुशील सरना 

 

8 Comments

  1. rajendra sharma "vivek" says:

    Gahraai se hriday ko choone vaali rachanaa

  2. Vishvnand says:

    वाह क्या बात है, बढ़िया अंदाज़
    रचना सुन्दर और मनभावन
    बधाई

  3. Siddha Nath Singh says:

    bahut khoob Sarna ji

  4. U.M.Sahai says:

    वाह, क्या बात है, मज़ा आ गया, बधाई सरना जी.

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