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दिल के चार खाने
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दिल में चार खाने …..
एक खाना है अपने लिए
तुम्हारी यादें यहाँ मेह्फूस हैं
जब भी अपने को अकेला महसूस करती हूँ
इस खाने में डुबकी लगा लेती हूँ
दूसरा खाना है तुम्हारा
तुम्हारी धड़कन इस खाने में रहती है…चुरा ली थी एक दिन
मेरी धड़कन इससे जुड़ी हुई है
तीसरा खाना है हमारी बिटिया एकतारा का
जो जन्म लेने से पहले ही इक तारा बन गयी
उसकी नाड़ी इस खाने से अभी भी जुड़ी हुई है
रोज़ एक लोरी सुनाती हूँ
तभी सोती है
चौथा खाना ?
हाँ…चौथा खाना खाली रखा है
पता नहीं किसके लिए
शायद खाली,वीरान ही रहेगा
पहले और दुसरे खाने में तुम जो रहते हो
वाह क्या बात है अति सुन्दर
बहुत बढ़िया अंदाज़े बयाँ
चौथा दिल का खाना है जहाँ शायद अनन्य art और creativity का भी डेरा है
जो हर खाने का अनुभव और अहसास है
khano me baant kar kiya khana kharab dil
kya keejiyega maang le jo kal hisaab dil.
ye koi jaaydaad hai azdaad kee nahin (azdaad-poorvaz,ancestors)
ahsas se bhara hua hai bas janaab dil
सुन्दर…