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नाज़ो अदा वो जिंदा अभी भी ज़हन में है.

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नाज़ो अदा वो जिंदा अभी भी ज़हन में है.
जादू गज़ब का यार  तेरे बांकपन में है.
 
भँवरे सा घूमता है शहर तेरे इर्द गिर्द 
खुशबू वो दिल फरेब तेरे गुल बदन में है. दिल फरेब-दिल को लुभाने वाली
 
जुल्फें ज़रूर तेरी अभी छू के आई है,
बादे सबा नशे में लरजती चमन में है .बादे सबा-पवन  
 
जानी सुनी सी आहटे पा लगती,गालिबन-
आता वो सीमतन ही मेरी अंजुमन में है.  सीमतन-चंद्रमुखी
 
नाबूदो नेस्त करने में मसरूफ मुद्दई,
इक पेड़ सायादार जो मेरे सहन में है.  नाबूदो नेस्त-नष्ट भ्रष्ट
 
मंजिल की जुस्तजू में सफ़र में रहे सदा,
थकते भी कैसे पाँव,मुसाफत जो मन में है.   मुसाफत-यात्रा की प्रवृत्ति
 
इक उम्र से है उसकी तवज्जुह की आरज़ू,
वो शोख मस्त अपनी अलग ही टशन में है.
 
गद्दीनशीं अवध में दशानन हैं इन दिनों,
और राम मुद्दतों से लगातार बन में हैं.
 
कोई भी हो अहद न रिवायत बदल सकी,
सीता ही इम्तिहाँ में सुलगती अगन में है.
 
कह तो रहे हो शेर बहुत सुबहो शाम “सिद्ध” 
रखना ज़रा ख़याल कि सब इक वज़न में है. 

2 Comments

  1. Vishvnand says:

    बहुत खूब
    बहुत अर्थपूर्ण शानदार शेर…

    हैं बड़े भ्रष्ट जनता को लूट स्वर्ग जायेंगे कहाँ
    भ्रष्टाचारी हीन बेवफाई तो इनके जहन में है ….

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