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“मरणोपरांत ही औपचारिकता क्यों ?
Hindi Poetry |
“मरणोपरांत ही औपचारिकता क्यों ?
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पशु-पक्षी अरु जीव जंतु जनम लेते हैं, मर जाते हैं,
जैसे तैसे पेट भरके या इक-दूजे को खा-पी करके !
पेटपूर्ति हेतु मानव यत्रतत्र धंधा करने को जाते हैं,
नाकामी होने पर लगता अब क्या करेंगे जी करके ?
कहते हैं मानव जाति ही सामाजिक कहलाती है,
बनी हुईं जाति-उपजाति सामाजिकता के नाम पर !
दूरभाष की सुविधा से अब बातचीत हो जाती है,
मेलजोल अब हुआ न्यूनतम एकाकी हैं निजधाम पर !
दाह-क्रिया, तीये-चौथे की बैठक या फिर मृत्यु भोज पर,
चाहे अनचाहे होता समाज एकत्रित मात्र रिश्ता जतलाने को !
लगती है औपचारिकता मुझे तो ऐसे व्यर्थ अफसोस पर,
जब नहीं रहा प्राणी अब जो देख सके ऐसे बतलाने को !
पता नहीं जब अन्तकाल में मानव किससे मिलने का इच्छुक था ?
अंतिम-श्वासों के चलते तब वह लगता मानो कोई मूक भिक्षुक था !
इसीलिए जीवित अवस्था में ही हम क्यूँ न मिलते-जुलते रहें,
ताकि अन्तकाल में रहे न पश्चाताप जो मजबूरन हम सहें !
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Maanveay samvedanaao ko jhakjhorane vaali rachanaa
@rajendra sharma “vivek”,
धन्यवाद !
बहुत सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति
प्रशंसनीय है
पर धीरे धीरे ये बची मरणोपरांत विधियां ही ख़त्म की जा रही हैं और उस समय मिलना
क्यूकि आज के इस Materialistic जमाने में ये सब फिजूल की बातें लगती है
आजकल ज्यादातर मिलना उनलोगों में ही होता है जहां मतलब होता है
वरना किसको यहाँ प्रथाओं में बर्बाद करने कोई समय बचा है
जीवन का उद्येश्य ही भ्रमित हो कर रह गया है…
@Vishvnand, साभार धन्यवाद !